शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan)

शिक्षा के क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ी परिवर्तन होते रहे हैं तथा इन परिवर्तनों का मुख्य जरिया शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) रहा है। मनुष्य ने जैसे-जैसे प्रगति की ओर कदम बढ़ाये हैं और आदि युग से आधुनिक युग में प्रवेश किया है, वैसे – वैसे शिक्षा मनुष्य का एक मुख्य अंग बनती गयी है। शिक्षा मानव समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है। शिक्षा में समय के साथ – साथ कई बदलाव आये हैं तथा इन बदलावों के पीछे मूल्यांकन की बहुत बड़ी भूमिका रही है। शिक्षा का मूल्यांकन करके ही उसमें सुधार लाया जा सकता है। जब शिक्षा के क्षेत्र में अर्थात शिक्षा के विभिन्न पहलुओं का हम मापन कर प्राप्त किये गए परिणामों का विश्लेषण कर उसमें सुधार लाने के प्रयास करते हैं तब हम उसे शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) कहते हैं।

पहले मूल्यांकन और मापन को लगभग एक समान समझा जाता था जिस कारण मूल्यांकन का पर्याय सिर्फ छात्रों द्वारा प्राप्त किये गए प्राप्तांकों से था, जिसे छात्रों द्वारा दिए गए उपलब्धि परिक्षण से प्राप्त किया जाता था। अभी भी कई लोग मूल्यांकन और मापन को एक समान मानते हैं। उपलब्धि परिक्षण द्वारा प्राप्त किये गए प्राप्तांक अंकों में होते हैं , अतः यह मापन है। उपलब्धि परिक्षण द्वारा प्राप्त किये के अंकों की सहायता से छात्रों के शिक्षण में परिवर्तन लाकर उसमें सुधार लाना तथा छात्रों की शिक्षा एवं रूचि का पता लगाना आदि मूल्यांकन के अंतर्गत आता है। मूल्यांकन के अंतर्गत हम मापन द्वारा प्राप्त किये गए अंकों का विश्लेषण कर उसमें सुधार लाते हैं।

परिचय

शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) दो शब्दों से मिलकर बना है- शिक्षा और मूल्यांकन। शिक्षा का अर्थ होता है- अंदर के ज्ञान को बाहर निकालना। मूल्यांकन का अर्थ होता है- मूल्य का अंकन करना , अर्थात किसी गुण का मापन करने के पश्चात प्राप्त परिणाम का विश्लेषण कर उसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करना एवं उस जानकारी की सहायता से उसमें सुधार लाना।

मूल्यांकन दो शब्दों से मिलकर बना है, मूल्य और अंकन।
मूल्य का अर्थ हुआ कीमत या महत्व ,किसी भी गुण को हम सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से देखते हैं, तथा अंकन का अर्थ हुआ हमारा समाज, संस्कृति एवं वैज्ञानिक उस गुण को किस रूप में आंकते हैं – अच्छा या बुरा। अतः मूल्यांकन के अंतर्गत मापन द्वारा प्राप्त परिणामों की व्याख्या कुछ सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा वैज्ञानिक मानदंडों के आधार पर की जाती है जिसके द्वारा किसी वस्तु, प्राणी अथवा क्रिया की किसी विशेषता वहां की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से उनकी वर्तमान स्थिति स्पष्ट की जाती है।

शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) का अर्थ हुआ शिक्षा से सम्बंधित हर क्षेत्र की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि, अर्थात बच्चे की बुद्धि, क्षमता, व्यक्तित्व एवं अभिक्षमता के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े प्रशासक, शिक्षक, कर्मचारी एवं अभिभावकों की क्रियाओं के शैक्षिक प्रभावों एवं शिक्षा नीति, शिक्षा के उद्देश्य ,पाठ्यचर्या एवं शिक्षण विधियों का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से मापन एवं मूल्यांकन कर इनके आधार पर इनमें सुधार लाये जाते हैं तथा सुधार के लिए सुझाव दिए जाते हैं।

शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) की परिभाषाएं

शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) के बारे में कई शिक्षाशास्त्रियों एवं विद्वानों ने लिखा तथा अपनी परिभाषाएं दीं , जो इस प्रकार हैं –

ब्रेडफील्ड एवं मोरडोक के अनुसार,
“मूल्यांकन किसी घटना को प्रतीक आवंटित करना है जिससे उस घटना का महत्व अथवा मूल्य किसी सामाजिक, सांस्कृतिक, अथवा वैज्ञानिक मानदंड के सन्दर्भ में ज्ञात किया जा सके।”

ब्रेडफील्ड के अनुसार,
“मूल्यांकन किसी वस्तु अथवा क्रिया के महत्व को कुछ सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक मानदंडों के आधार पर चिह्न विशेषों में प्रकट करने की प्रक्रिया है।”

एच. एच. रैमर्स तथा एम. एल. गेज के अनुसार,
“मूल्यांकन में व्यक्ति अथवा समाज अथवा दोनों की दृष्टि से क्या अच्छा है अथवा क्या वांछनीय है का विस्तार निहित रहता है।”

एन. एम. डांडेकर के अनुसार,
“मूल्यांकन को छात्रों द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की सीमा ज्ञात करने की क्रमबद्ध प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

जे . डब्ल्यू . रइटस्टोन के अनुसार,
“मूल्यांकन एक नवीन प्राविधिकी पद है, जिसका उपयोग मापन की धारणा को परम्परागत जांचों एवं परीक्षाओं की अपेक्षा अधिक व्यापक रूप से व्यक्त करने के लिए किया गया है।”

कोठारी कमीशन(1966) के अनुसार,
“मूल्यांकन एक क्रमिक प्रक्रिया है जो कि सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है और जो शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ रूप से सम्बंधित है।”

शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) के प्रकार

शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) का क्षेत्र बहुत व्यापक है। शैक्षिक मूल्यांकन के अंतर्गत हम शिक्षा से सम्बंधित विभिन्न क्षेत्रों का माइकल स्क्रिवेन ने शैक्षिक मूल्यांकन के मुख्य दो प्रकार बताये हैं, जो कि निम्नवत्त हैं-

  1. संरचनात्मक मूल्यांकन
  2. योगात्मक मूल्यांकन
    संरचनात्मक मूल्यांकन
    संरचनात्मक मूल्यांकन के अंतर्गत किसी निर्माणाधीन शिक्षा नीति कार्यक्रम पाठ्यवस्तु, शिक्षण विधि, शिक्षण सामग्री तथा मूलयांकन विधि को पूर्ण करने या अंतिम रूप देने से पूर्व मूल्यांकित किया जाता है। इस प्रकार के मूल्यांकन को स्क्रिवेन ने संरचनात्मक मूल्यांकन का नाम दिया है।
    योगात्मक मूल्यांकन
    योगात्मक मूल्यांकन के अंतर्गत किसी पूर्व निर्मित शिक्षा नीति, कार्यक्रम, पाठ्यवस्तु, शिक्षण विधि, शिक्षण सामग्री तथा मूल्यांकन विधि की उपयोगिता एवं महत्वत्ता की जाँच की जाती है।

उपसंहार

शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) का अपना एक अलग क्षेत्र है। मूल्यांकन आजकल हर क्षेत्र में किया जाता है। मूल्यांकन का तात्पर्य किसी भी मनुष्य, वस्तु या क्रिया की किसी विशेषता के मूल्य का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से अंकन कर उसमें सुधार एवं सुधार के लिए सुझाव देने से है। अतः शैक्षिक मूल्यांकन (shaikshik mulyankan) के अंतर्गत हम शिक्षा से सम्बंधित हर क्षेत्र का मूल्यांकन करते हैं जो की अपने आप में बहुत व्यापक क्षेत्र है। इसके अंतर्गत हम शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों की शिक्षा से लेकर शिक्षा की नीतियों एवं शिक्षा से सम्बंधित हर व्यक्ति एवं समूह आदि का अध्ययन कर इनके मूल्यों का अंकन कर उसमें सुधार लाते हैं या सुधार के लिए सुझाव देते हैं।

 

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