ब्लूम का वर्गीकरण (Bloom’s Taxonomy)

ब्लूम का वर्गीकरण (Bloom’s Taxonomy) तीन स्तरों का एक समूह है जो कि श्रेणीबद्ध है तथा इसका उपयोग शैक्षिक शिक्षण उद्देश्यों को जटिलता और विशिष्टता के स्तरों में वर्गीकृत करने के लिए किया जाता है। ब्लूम के वर्गीकरण (Bloom’s Taxonomy) का सिद्धांत बेंजामिन ब्लूम ने 1956 में दिया था। बेंजामिन ब्लूम जो कि अमेरिका के निवासी थे उन्होंने अपने वर्गीकरण में बालक द्वारा उसके उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधिगम के मुख्य तीन पक्ष बताए जो निम्नवत हैं-

ब्लूम का वर्गीकरण:-

1. संज्ञानात्मक पक्ष- दिमाग से संबंधित

2. भावात्मक या संवेगात्मक पक्ष- भावनाओं से संबंधित

3. गत्यात्मक पक्ष या क्रियात्मक पक्ष- शारीरिक कार्यकलापों से संबंधित

संज्ञानात्मक पक्ष- ब्लूम का वर्गीकरण (Cognitive Domain of Bloom’s Taxonomy)

संज्ञानात्मक पक्ष का वर्गीकरण बेंजामिन ने 1960 में किया था। संज्ञानात्मक पक्ष को हम ज्ञानात्मक पक्ष भी कह सकते हैं। संज्ञान अर्थात दिमाग से संबंधित, किसी भी विषय वस्तु का ज्ञान प्राप्त करना संज्ञानात्मक पक्ष के अंतर्गत आता है। अतः हम कह सकते हैं कि संज्ञानात्मक पक्ष मानसिक क्षमताओं से संबंधित है। संज्ञानात्मक पक्ष को 6 भागों में बांटा गया है जिसमें बालक को निम्न स्तर से उच्च स्तर तक ले जाया जाता है।

ब्लूम का वर्गीकरण
      ब्लूम का वर्गीकरण
1. ज्ञान

इसके अंतर्गत बच्चों को ऐसा ज्ञान दिया है जो अकसर उसे आसानी से याद रहता है। बालक इस प्रकार के ज्ञान को बुद्धि में संचित कर के रखता है तथा पुनः प्रत्यास्मरण कर उस ज्ञान का प्रयोग करता है। इसके अंतर्गत बालक को याद कराया जाता है की क से केला, ख से खरगोश आदि, किन्तु बच्चों को पता नहीं होता कि केला होता क्या है, खरगोश क्या होता है।

2. बोध

बोध के अंतर्गत बालक को जो ज्ञान दिया जाता है उस ज्ञान के प्रति उसकी समझ को विकसित किया जाता है। अब इसमें बालक ने जो याद किया था उसको समझ पाता है। इसके अंतर्गत बालक की समझ को विकसित किया जाता है। इसके अंतर्गत बालक समझ पता है कि केला क्या होता है, खरगोश क्या है आदि।

3. अनुप्रयोग

इसके अंतर्गत बालक परिस्थिति के अनुसार प्राप्त किए गए ज्ञान का प्रयोग करता है।

4. विश्लेषण

इसके अंतर्गत हम प्राप्त किए गए ज्ञान को अलग-अलग करके समझना सीखते हैं।

5. संश्लेषण

इसके अंतर्गत बालक प्राप्त किए गए विभिन्न ज्ञान को एक साथ जोड़कर एक नई संरचना का निर्माण करता है।

6. मूल्यांकन

इसके अंतर्गत बालक द्वारा प्राप्त किए गए ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है। अर्थात इसके अंतर्गत यह पता लगाया जाता है कि बालक ने कितना सीखा है।

भावात्मक पक्ष- ब्लूम का वर्गीकरण (Affective Domain of Bloom’s Taxonomy)

भावात्मक पक्ष का वर्गीकरण क्रयवाल एवं मारिया ने 1964 में किया। भावात्मक पक्ष का तात्पर्य छात्रों की भावनाओं से संबंधित है। भावनात्मक पक्ष के अंतर्गत अध्यापक छात्रों को प्रकरण से भावनाओं के द्वारा जोड़ने का प्रयास करते हैं। अतः इसके अंतर्गत अध्यापक छात्रों के भावात्मक पक्ष का विकास करते हैं

1. अधिग्रहण

अधिग्रहण का तात्पर्य हुआ ध्यान लगाना। इसके अंतर्गत बालक को जो चीज सिखाई जाती है उसको उस पर ध्यान लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके अंतर्गत अध्यापक को बालक की भावनाओं को उस प्रकरण से जोड़ना चाहिए जिसके कारण बालक इस प्रकरण पर अधिक ध्यान लगा सके।

2. अनुक्रिया

किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने के पश्चात बालक उस वस्तु के सापेक्ष अनुक्रिया करता है।

3. अनुमूल्यन

जब बालक किसी सीखे हुए ज्ञान के सापेक्ष प्रतिक्रिया करता है तो उसके द्वारा अनुमूल्यन का निर्माण होता है।

4. संगठन

इसमें बालक के अंदर भिन्न भिन्न प्रकार के अनुमूल्यन संगठित होते हैं।

5. स्वाभाविकरण

अंत में इन सब प्रक्रियाओं से होते हुए सीखा हुआ ज्ञान या पक्ष हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाता है।

क्रियात्मक पक्ष- ब्लूम का वर्गीकरण (Psychomotor Domain of Bloom’s Taxonomy)

क्रियात्मक पक्ष के अंतर्गत बालक शारीरिक क्रियाओं के द्वारा सीखता है। 1972 में सिम्पसन ने बताया कि शारीरिक गतिशीलता से सम्बंधित, समन्वयन और गामक कौशल क्षेत्र से मिलकर मनोगात्मक पक्ष बनता है।

1. अनुकरण

इसमें बालक दूसरों का अनुकरण या नकल करके सीखता है। इसके अंतर्गत बालक हुबहू वैसा करने की कोशिश करता है जैसा दूसरा कर रहा है।

2. कार्य करना

इसमें बालक को किसी कार्य को करने के लिए निर्देश दिए जाते हैं। बालक दिए गए निर्देशों के आधार पर उस कार्य को करता है।

3. नियंत्रण

इसके अंतर्गत बालक के किसी कार्य को करने पर नियंत्रण करना सीखता है। यहां नियंत्रण का तात्पर्य त्रुटियों में कमी से है। किसी कार्य को बार बार करने से त्रुटियों में कमी आती है तथा वह कार्य शुद्धता से पूर्ण होता है।

4. समन्वय

इसमें बालक एक साथ कई कार्यों को करने में सक्षम हो जाता है अर्थात बालक कार्यो के मध्य आराम से भेद कर पाता है तथा सभी कार्यों को एक साथ आराम से कर लेता है।

5. स्वाभाविकरण

इसके अंतर्गत कार्य बालक के स्वभाव से जुड़ जाता है। इसके अंतर्गत बालक किसी कार्य को जिसे उसने प्राप्त किया है अचेतन अवस्था में भी आराम से कर लेता है।

 

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