अनौपचारिक शिक्षा 

शिक्षा की संस्थाओं के तीन मूल रूपों को हम जानते हैं जो कि औपचारिक शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) तथा निरौपचारिक शिक्षा हैं।
ये तीनों संस्थाएं अपने-अपने गुणों की वजह से समाज में अपना एक विशेष स्थान रखती हैं।
समाज से सबसे ज्यादा संपर्क में जो रहता है वह अनौपचारिक शिक्षा अधिक प्राप्त करता है।
अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए जो संस्थाएं होती हैं, वह हमारी प्रकृति और समाज हैं।
समाज और प्रकृति के बीच रह कर मनुष्य जो सीखता है वह शिक्षा अनौपचारिक शिक्षा कहलाती है।

अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha)

शिक्षा की संस्थाओं में अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) शब्द के अर्थ को अगर हम समझें तो सामान्य शब्दों में इसका अर्थ यह निकलता है कि किसी कार्य को करने के लिए हमें न तो किसी नियम का पालन करना है न ही किसी प्रकार की कोई औपचारिकता निभानी है। अनौपचारिक शिक्षा की प्राप्ति करने के लिए हमें किसी प्रकार की कोई संस्था या पाठशाला की आवश्यकता नहीं पड़ती। अनौपचारिक शिक्षा की प्राप्ति हम कभी भी और कहीं भी, किसी भी स्थान पर, किसी भी समय, किसी भी अवस्था में ग्रहण कर सकते हैं।

अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) की परिभाषा

अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) के बारे में कई शिक्षाशास्त्रियों एवं विद्वानों ने परिभाषाएं दी हैं जो की इस प्रकार हैं-

कूंंबस और अहमद के अनुसार-

“जनसंख्या में विशेष उपसमूहों, वयस्क तथा बालकों का चुना हुआ इस प्रकार का अधिगम प्रदान करने के लिए औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के बाहर कोई भी संगठित कार्यक्रम है।”

ला बैला के अनुसार

“औपचारिक शिक्षा का संदर्भ विशिष्ट लक्षित जनसंख्या के लिए स्कूल से बाहर संगठित कार्यक्रम है।”

इलिच और फ्रेयर के अनुसार

“अनौपचारिक शिक्षा औपचारिक विरोधी शिक्षा है।”

मोती लाल शर्मा के अनुसार

“संक्षेप में कोई कह सकता है कि अनौपचारिक शिक्षा एक सक्रिय, आलोचनात्मक, द्वंदात्मक शैक्षिक कार्यक्रम है जो की मनुष्यों को सीखने, स्वयं अपनी सहायता करने, चेतन रूप से अपनी समस्याओं का आलोचनात्मक रूप से सामना करने में सहायता करता है। अनौपचारिक शिक्षा का लक्ष्य संकलित, प्रामाणिक मानव प्राणियों का विकास करना है जो की समाज के विकास में योगदान दे सकें। इसमें न केवल व्यक्ति बल्कि एक सच्चे अधिगम समाज में योगदान देते हुए सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था सीखती है।”

अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) के बारे में हम निम्न बिंदुओं से जान सकते हैं –

१. इस प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने के लिए कोई निश्चित स्थान नहीं होता।
इस प्रकार की शिक्षा को हम चलते-फिरते कहीं भी ग्रहण कर सकते हैं।

२. इस प्रकार की शिक्षा का कोई पूर्व-निर्धारित लक्ष्य नहीं होता।

३. इस प्रकार की शिक्षा को हम कभी भी, कहीं भी और किसी भी आयु में प्राप्त कर सकते हैं।

४. इस प्रकार की शिक्षा को बच्चा जन्म से मृत्यु तक प्राप्त करता है।

५. इस प्रकार की शिक्षा के कोई पूर्व-निर्धारित लक्ष्य नहीं होते हैं अतः इस प्रकार की शिक्षा के ऋणात्मक परिणाम भी हो सकते हैं।

६. इस प्रकार की शिक्षा को शिक्षार्थी अपने आस-पास के पर्यावरण तथा समाज से ग्रहण करता है ।

७. इस प्रकार की शिक्षा के कोई नियम नहीं होते।

८. इस प्रकार की शिक्षा में शिक्षार्थी को हर प्रकार की आजादी होती है, तथा वह किसी से भी, किसी भी प्रकार की शिक्षा ग्रहण कर सकता है।

९. इन संस्थानों को बनाने के लिए इनके पीछे किसी भी प्रकार का कोई भी संगठन नहीं होता।

१०. इस प्रकार की संस्थानों में किसी भी प्रकार का कोई भी पूर्व-निर्धारित पाठ्यक्रम नहीं होता है।

११. इस प्रकार के शिक्षण में किसी भी प्रकार की कोई परीक्षा नहीं होती।

१२. इस प्रकार की शिक्षा‌ में किसी भी प्रकार की कोई भी समय-सारिणी नहीं होती।

१३. इस प्रकार की शिक्षा शिक्षार्थी कभी भी, कहीं भी, किसी से भी ले सकता है।

१४. इस प्रकार के शिक्षण में किसी भी प्रकार का कोई भी प्रमाण पत्र या डिग्री नहीं दिया जाता है।

१५. इस प्रकार के शिक्षण में किसी भी प्रकार का कोई भी शुल्क न तो लिया जाता है न ही दिया जाता है।

१६. इस प्रकार की शिक्षा को ग्रहण करने या प्रदान करने में किसी भी प्रकार का कोई भी मानसिक दबाव नहीं होता है।

उपसंहार

अधोलिखित विवरण से हमें यह पता चलता है कि कुछ शिक्षा की संस्थाएं ऐसी भी होती हैं जहां हमें न तो किसी नियम का पालन करना होता है और न ही शिक्षा की प्राप्ति के लिए कोई शिक्षा की संस्थाएं होती हैं। इस प्रकार की शिक्षण संस्थाओं को अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) की संस्थाएं कहते हैं। इस प्रकार की शिक्षा हम कभी भी, कहीं भी ग्रहण कर सकते हैं।
अधिकतर इस प्रकार की शिक्षा मनुष्य अपनी प्रकृति तथा अपने समाज से ग्रहण करता है।

 

 

यह भी जानें-

shiksha

शिक्षा की संस्थाएं

 

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