शिक्षा की संस्थाएं

संस्थाएं अर्थात एजेंसी जो की लैटिन शब्द ‘agere’ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है कार्य करना।

हमारे समाज ने कई संस्थाएं बना ली है जिनके द्वारा शिक्षार्थी शिक्षा प्राप्त करता है।

शिक्षा के संगठन या संस्थाएं वह स्थान होते हैं जहां जाकर शिक्षार्थी शिक्षा की प्राप्ति करता है या शिक्षा लेता है। शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है अतः इन संस्थाओं से शिक्षा प्राप्त करने का सब को सामान अधिकार होता है। इन संस्थाओं से किसी भी आयु वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा की संस्थाओं को उनके गुणों के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

१. औपचारिक

२. अनौपचारिक

३. निरौपचारिक

            १. औपचारिक

 

औपचारिक शब्द के अर्थ को अगर हम समझें तो सामान्य शब्दों में इसका अर्थ यह निकलता है कि नियमों के तहत किसी कार्य को संपन्न करना। अतः औपचारीक शिक्षा वह शिक्षा है जिसे प्राप्त करने के लिए हमें कई नियमों का पालन करना पड़ता है।  औपचारिक शिक्षा की प्राप्ति के लिए हम शिक्षा के जिन संस्थानों में प्रवेश लेते हैं वहां हमें शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई नियमों का पालन करना पड़ता है। इस प्रकार की शिक्षा शिक्षार्थी विद्यालयों, महाविधालय या विश्वविधालयों से प्राप्त करते हैं।

किसी भी प्रकार की शिक्षा जो की विद्यार्थी द्वारा प्राप्त की जाए तथा उस शिक्षा के निश्चित उद्देश्य हों, निर्देशात्मक हो, पर्यवेक्षण ( देखरेख ) आदि की सुविधा हो तो इस प्रकार की शिक्षा को औपचारिक शिक्षा कहते हैं।

औपचारिक शिक्षा को हम निम्न बिंदुओं से समझ सकते हैं –

१. इस प्रकार की शिक्षा विधालय, महाविधालय, विश्वविधालय आदि संस्थानों में संपन्न होती है।

२. इस प्रकार की शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्य पहले से ही निर्धारित किये हुए होते हैं।

३. इस प्रकार की शिक्षा एक पूर्व निर्धारित अवधी तक सिमित होती है।

४. इस प्रकार की शिक्षा के लिए निश्चित आयु वर्ग निर्धारित होते हैं तथा इस प्रकर की शिक्षा को शिक्षार्थी ५ वर्ष की आयु स शुरू करता है।

५. इस प्रकार की शिक्षा के पूर्व निर्धारित लक्ष्य होते हैं अतः शिक्षक शिक्षार्थी को दी जाने अली शिक्षा के लिए पहले से तैयार होते हैं जिस कारण शिक्षा के परिणाम अच्छे  होते हैं।

६. इस प्रकार की शिक्षा शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों की देखरेख में होती है।

७. इस प्रकार की संस्थानों के कठोर नियम होते हैं तथा ये नियम सभी शिक्षार्थियों के लिए समान होते हैं।

८. इस प्रकार की संस्था में शिक्षक तथा शिक्षार्थी को किसी प्रकार की आजादी नहीं होती। यहाँ सब नियम के आधार पर होता है।

९. इस प्रकार के शिक्षण संस्थानों को बनाने के लिए इनके पीछे बड़े बड़े संघठन होते हैं जो इन संस्थानों के नियम तथा इसमें प्रवेश से लेकर छोड़ने तक की संरचना तैयार करते हैँ।

१०. इस प्रकार की संस्थानों की पाठ्यचर्या तथा पाठ्यक्रम संगठनों में विषय के विशेषज्ञों के द्वारा बनाए जाते हैं, अतः पाठ्यक्रम पूर्व निर्धारित होते हैं।

११. इस प्रकार की संस्थानों का पाठ्यक्रम औपचारिक रूप से समय के अंतर्गत संपन्न करा दिया जाता है।

१२. इस प्रकार की शिक्षण संस्थानों की पूर्व निर्धारित समय सारिणी होती है जिसके अनुसार शिक्षण कार्य संपन्न होता है।

१३. इस प्रकार की शिक्षण संस्थानों में केवल प्रशिक्षित शिक्षक ही शिक्षण दे सकते हैं।

१४. इस प्रकार की शिक्षा को चार दिवार शिक्षा भी कहते हैं।

१५. इस प्रकार की शिक्षा में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों को पता होता है की क्या सीखना है और क्या सिखाना है।

१६. इस प्रकार की शिक्षा में अनुशासन पर अधिक ध्यान रखा जाता है।  अतः अनुशासन सख्त होता है।

१७. इस प्रकार की शिक्षा में नियमित तौर पर परीक्षाएं कराई जाती हैं।

१८. इस प्रकार की शिक्षा में परीक्षा के परिणाम  घोषित किए जाते हैं तथा अंत में विद्यार्थी को प्रमाण पत्र या डिग्री प्रदान की जाती है।

२. अनौपचारिक

अनौपचारिक शब्द के अर्थ को अगर हम समझें तो सामान्य शब्दों में इसका अर्थ यह निकलता है कि किसी कार्य को करने के लिए हमें ना तो किसी नियम का पालन करना है ना ही किसी प्रकार की कोई औपचारिकता निभानी है। अनौपचारक शिक्षा की प्राप्ति करने के लिए हमें किसी प्रकार की कोई संस्था या पाठशाला की आवस्यकता नहीं पड़ती।  अनौपचारिक शिक्षा की प्राप्ति हम कभी भी और कहीं भी किसी भी स्थान में किसी भी समय किसी भी अवस्था में ग्रहण कर सकते हैं।

 

अनौपचारिक शिक्षा को हम निम्न बिंदुओं से समझ सकते हैं –

१. इस प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने के लिए कोई निश्चित स्थान नहीं होता। इस प्रकार की शिक्षा को हम चलते फिरते कहीं भी ग्रहण कर सकते हैं।

२. इस प्रकार की शिक्षा का कोई पूर्व निर्धारित लक्ष्य नहीं होता।

३. इस प्रकार की शिक्षा को हम कभी भी कही भी और किसी भी आयु में प्राप्त कर सकते हैं।

४. इस प्रकार की शिक्षा को बच्चा जन्म से मृत्यु तक प्राप्त करता है।

५. इस प्रकार की शिक्षा के कोई पूर्व निर्धारित लक्ष्य नहीं होते हैं अतः इस प्रकार की शिक्षा के ऋणात्मक परिणाम भी हो सकते हैं।

६. इस प्रकार की शिक्षा को शिक्षार्थी अपने आस पास के पर्यावरण तथा समाज से ग्रहण करता है ।

७. इस प्रकार की शिक्षा के कोई नियम नहीं होते।

८. इस प्रकार की शिक्षा में शिक्षार्थी को हर प्रकार की आजादी होती है तथा वो किसी से भी किसी भी प्रकार की शिक्षा ग्रहण कर सकता है।

९. इस प्रकार के शिक्षण संस्थानों को बनाने के लिए इनके पीछे किसी भी प्रकार का कोई भी संघठन नहीं होता।

१०. इस प्रकार की संस्थानों में किसी भी प्रकार का को कोई भी पूर्व निर्धारित पाठ्यक्रम नहीं होता है।

११. इस प्रकार के शिक्षण में किसी प्रकार की कोई परीक्षा नहीं होती।

१२. इस प्रकार की शिक्षा की किसी भी प्रकार कोई भी समय सारिणी नहीं होती है।

१३. इस प्रकार की शिक्षा शिक्षार्थी कभी भी कहीं भी किसी से भी ले सकता है।

१४. इस प्रकार के शिक्षण में किसी भी प्रकार का कोई भी प्रमाण पत्र या डिग्री ना तो दी जाती है ना ही ली जाती है।

१५. इस प्रकार के शिक्षण में किसी भी प्रकार का कोई भी शुल्क ना तो लिया जाता है ना ही दिया जाता है।

१६. इस प्रकार की शिक्षा को ग्रहण करने या प्रदान करने में किसी भी प्रकार का कोई भी मानसिक दबाव नहीं होता है।

 

                            ३. निरौपचारिक

औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा के मध्य सामंजस्य स्थापित करने वाली शिक्षा को निरौपचारिक शिक्षा कहते हैं। इस प्रकार की शिक्षा में औपचारिक एवं अनौपचारिक, दोनों प्रकार की शिक्षाओं के गुण मिलते हैं।  इस प्रकार की शिक्षा में औपचारिक शिक्षा की तरह नियम भी होते हैं तथा अनौपचारिक शिक्षा की तरह आजादी भी होती है।  पर इसके नियम तथा आजादी की सीमाएं होती हैं।

निरौपचारिक शिक्षा को हम निम्न बिंदुओं से समझ सकते हैं।

१. इस प्रकार की शिक्षा मुक्त विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान की जाती ही।

२. इस प्रकार की शिक्षा के स्पस्ट उद्देश्य होते हैं।

३. इस प्रकार की शिक्षा की कोई पूर्व निर्धारित अवधी नहीं होती है।

४. इस प्रकार की शिक्षा के लिए कोई निश्चित आयु नहीं  होती है तथा इस प्रकर की शिक्षा को किसी भी आयु वर्ग का व्यक्ति कभी भी किसी भी आयु में शुरू कर सकता है।

५. इस प्रकार की शिक्षा के परिणाम कभी अच्छे होते हैं तो कभी अच्छे नहीं होते हैं क्योंकि इस प्रकार की शिक्षा में औपचारिक तथा अनौपचारिक, दोनों प्रकार की शिक्षा का समावेश है।

६. इस प्रकार की शिक्षा व्यक्ति अधिकतर स्वयं स्व-अध्ययन द्वारा प्राप्त करता है।

७. इस प्रकार की संस्थानों के नियम सरल होते हैं।

८. इस प्रकार की संस्था में शिक्षक तथा शिक्षार्थी को किसी प्रकार की बंदिश नहीं होती।

९. इस प्रकार के शिक्षण संस्थानों को बनाने के लिए इनके पीछे बड़े बड़े संघठन होते हैं।

१०. इस प्रकार की संस्थानों के पाठ्यचर्या तथा पाठ्यक्रम पूर्व निर्धारित होते हैं।

११. इस प्रकार की संस्थानों का पाठ्यक्रम शिक्षार्थी स्वयं समय के अंतर्गत संपन्न कर लेता है।

१२. इस प्रकार की शिक्षण संस्थानों की पूर्व निर्धारित समय सारिणी होती है किन्तु इस समय सारिणी का पालन करना या ना करना शिक्षार्थी पर निर्भर करता है।

१३. इस प्रकार की शिक्षण संस्थानों में केवल प्रशिक्षित शिक्षक ही शिक्षण दे सकते हैं। प्रशिक्षित शिक्षक के स्थान पर शिक्षार्थी अन्य प्रकार से भी शिक्षा ग्रहण कर सकता है।

१४. इस प्रकार की शिक्षा को चार दिवार शिक्षा के बाहर की शिक्षा भी कहते हैं।

१५. इस प्रकार की शिक्षा में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों को पता होता है की क्या सीखना है और क्या सिखाना है।

१६. इस प्रकार की शिक्षा में अनुशासन पर अधिक ध्यान रखने की आवस्यकता नहीं होती है।

१७. इस प्रकार की शिक्षा में नियमित तौर पर परीक्षाएं नहीं कराई जाती हैं।

१८. इस प्रकार की शिक्षा में विद्यार्थी को प्रमाण पत्र या डिग्री प्रदान की भी जाती है और नहीं भी की जाती है।

१९. इस प्रकार की शिक्षा को ग्रहण करने में किसी भी प्रकार का कोई भी मानसिक दबाव नहीं होता है।

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