क्षेत्र अधिगम सिद्धांत (Field Theory)

अधिगम सिद्धांतों में क्षेत्र अधिगम सिद्धांत (Field Theory) का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। क्षेत्र अधिगम सिद्धांत (Field Theory) का प्रतिपादन 1917 में कुर्ट लेविन द्वारा किया गया। कुर्ट लेविन एक जर्मन मनोवैज्ञानिक हैं। इनका जन्म 1890 में जर्मनी में हुआ। कुर्ट लेविन गेस्टाल्टवाद को पूरी तरह से मानते हैं तथा इसके समर्थक हैं। कुर्ट लेविन को संगठनात्मक मनोविज्ञान का प्रतिपादक, समूह गतिशीलता का प्रतिपादक, संज्ञानवादी गेस्टाल्टवादी, सामाजिक मनोविज्ञाान का प्रतिपादक माना जाताा है।

परिचय (Field Theory)

कुर्ट लेविन ने क्षेत्र अधिगम सिद्धांत (Field Theory) के अंतर्गत 3 पदों को परिभाषित किया है।

अभिप्रेरणा
समग्रता
अनुभूति

कुर्ट लेविन के क्षेत्र अधिगम (Field Theory) सिद्धांत के अंतर्गत ही संज्ञानात्मक सिद्धांत (Cognitive Theory) आता है। इस सिद्धांत में संज्ञानात्मक संरचना को ही क्षेत्र (Field) बोला गया है। क्षेत्र मनोविज्ञान शब्द कुर्ट लेविन का ही है तथा इस पर इन्होंने पीएच.डी. की है। कुर्ट लेविन के अनुसार प्राणी व्यवहार उन सभी कारकों द्वारा प्रभावित होता है जो उसके क्षेत्र के वातावरण में उपस्थित हैं।

किसी प्राणी के व्यवहार को जानने के लिए उसके व्यवहार को निम्न भागों में तोड़ा जाता है।

शारीरिक
मानसिक एवं
आत्मिक

कुर्ट लेविन के अनुसार व्यवहार को समझने के लिए व्यवहार को अलग-अलग भागों में नहीं तोड़ेंगे। कुर्ट लेविन ने व्यवहार की समग्रता को बढ़ाते हुए उसमें वातावरण को भी जोड़ दिया। अतः कुर्ट लेविन के अनुसार व्यवहार को तोड़ने के स्थान पर उस पर वातावरण को जोड़ दिया जाए एवं व्यवहार को पूर्ण रूप में समग्रता के साथ जाना जाए।

कुर्ट लेविन का तर्क

कुर्ट लेविन के अनुसार प्राणी के व्यवहार को उसके वातावरण से अलग करके नहीं समझा जा सकता। प्राणी के व्यवहार में उसके वातावरण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। यदि वातावरण नहीं हुआ तो व्यवहार की कल्पना कर पाना संभव नहीं। इनके अनुसार किसी प्राणी के व्यवहार को अगर समझना है तो उसके वातावरण को भी समझना आवश्यक है।

किसी प्राणी का व्यवहार उसकी आवश्यकता, इच्छा, मूल प्रवृत्तियों आदि पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति की आवश्यकताएं, इच्छाएं एवं मूल प्रवृत्तियां उसे किसी प्रकार का व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती हैं या बल देती हैं। इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधन हमारे सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण में उपस्थित होते हैं।

कुछ इच्छायें या आवश्यकताएं ऐसी होती हैं जो समाज के द्वारा स्वीकृत नहीं होती हैं। इस प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाती है। उन इच्छाओं की पूर्ति के लिए हमारे अंदर कुछ बल कार्य करते हैं जिनमें से एक बल उन इच्छाओं की पूर्ति करने को कहता है और दूसरा बल उन इच्छाओं को किसी और प्रकार से प्राप्त करने के बारे में बोलता है।

कुर्ट लेविन का मानना है कि कुछ बल हमारे व्यक्तित्व से होते हैं जो हमारी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं पर आधारित होते हैं। तथा कुछ ऐसे बल होते हैं जो हमारे सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण में होते हैं तथा हमें प्राकृतिक एवं सामाजिक संगठन के अनुसार व्यवहार करने के लिए प्रेरित करते हैं।

प्राणी की इच्छाएं बल का काम करती हैं। प्राणी की इच्छाओं से उत्पन्न दोनों बलों के मध्य अंतः क्रिया से इच्छा का एक नया रूप सामने आता है जिसे हम परिणामी बल कहते हैं। दो बल आपस में अंतः क्रिया करते हैं जिसके कारण बीच का रास्ता निकलता है जिसे हम परिणामी बल कहते हैं। यह परिणामी बल हमें दिशा देगा कि किस प्रकार का व्यवहार करना है।

क्षेत्र अधिगम सिद्धांत
Learning theory by Kurt Lwin

आंतरिक व्यक्तिगत परिस्थितियां

कुर्ट लेविन ने आंतरिक व्यक्तिगत परिस्थितियों को दो भागों में बांटा है-

  1. मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व (Psychological Personality)
    मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व मैं प्राणी की इच्छाएं, रुचि, क्षमता, योग्यता, मनोवृति आदि आती हैं
  2. मनोवैज्ञानिक पर्यावरण या वातावरण (Psychological Environment)
    मनोवैज्ञानिक वातावरण प्राणी के सामाजिक एवं भौतिक पर्यावरण से मिलकर बनता है।

कुर्ट लेविन कहते हैं “व्यक्ति मनोवैज्ञानिक व्यक्ति होता है।”

कुर्ट लेविन का व्यवहार सूत्र (Field Theory)

कुर्ट लेविन ने व्यवहार को बताने के लिए व्यवहार का सूत्र दिया तथा कहा “मानव व्यवहार व्यक्ति और वातावरण का प्रतिफल है।

B=f(E×P)

जहां,
B= व्यवहार
f= कार्य
E= मनोवैज्ञानिक पर्यावरण वातावरण
P= मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व

कुर्ट लेविन के अनुसार शक्तियां अथवा बल दो प्रकार के होते हैं।

  1. आकर्षण बल
    लक्ष्य के पास ले जाता है
  2. विकर्षण बल
    लक्ष्य से दूर करता है

जीवन दायरा (Life Space)

यह वह स्थिति या समय है जब कोई प्राणी चेतन अवस्था में किसी घटना का प्रत्यक्षीकरण कर रहा हो। जीवन दायरे के अंतर्गत कुर्ट लेविन ने निम्न शब्दावलियों का प्रयोग किया।

मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व

मनोवैज्ञानिक वातावरण

कर्षण बल (Vector)

बल की उत्पत्ति प्राणी की इच्छाओं तथा आवश्यकताओं (मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व) आदि से होती है। इस प्रकार का बल लक्ष्य की ओर जाने के लिए प्रेरित करता है। किसी भी प्रकार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बल लगता है। लेविन ने बल को कर्षण का नाम दिया है। लेविन ने कर्षण के दो प्रकार बताए हैं।

धनात्मक कर्षण (आकर्षण)

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए सहायक

ऋणात्मक कर्षण (विकर्षण)

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए बाधक

किसी कार्य को करने के लिए दो कर्षण शक्ति कार्य करती हैं जिनमें से एक कर्षण शक्ति मनोवैज्ञानिक व्यक्ति से आती है तथा दूसरी मनोवैज्ञानिक वातावरण से। यदि कोई कार्य आसान हो तथा उससे कोई हानि ना हो तो मनोवैज्ञानिक व्यक्ति तथा मनोवैज्ञानिक वातावरण एक ही कर्षण शक्ति का प्रयोग करते हैं। किसी प्राणी के जीवन दायरे में एक या एक से अधिक कर्षण शक्तियां कार्य करती हैं।

सदिश (Valence)

जब हम कर्षण शक्ति को दिशाओं के साथ प्रदर्शित करते हैं तो उसे सदिश कहते हैं। इसके अंतर्गत यह जानना जरूरी है कि कौन सी कर्षण शक्ति हमें लक्ष्य की ओर ले जा रही है और कौन सी हमें लक्ष्य से दूर ले जा रही है। कौन सी शक्ति किस दिशा में कार्य कर रही है यह जानना भी जरूरी है ताकि हम उनका एक परिणामी बल निकाल सके। अतः सदिश की महत्वता इसलिए है क्योंकि यह हमारे विभिन्न कर्षणों जो हमारे जीवन दायरे पर लग रहे हैं उनकी दिशा व्यक्त करता है।

द्वंद (Conflicts)

जब कई तरह के कर्षण आ जाते हैं उस स्थिति में द्वंद उत्पन्न होता है। यह स्थिति तब होती है जब प्राणी के समक्ष एक से अधिक रास्ते खुले होते हैं तथा उसे यह समझ नहीं आता कि कौन से रास्ते पर जाया जाए।

द्वंद तीन प्रकार के होते हैं-

  1. पहुंच पहुंच द्वंद (Approach Approach Conflict)
  2. पहुंच टालना द्वंद (Approach Avoidance Conflict)
  3. टालना टालना द्वंद (Avoidance Avoidance Conflict)

बाधा या अवरोध (Barrier)

द्वंद के कारण बाधा उत्पन्न होती है तथा यह समझ नहीं आता कि क्या किया जाए, किस प्रकार का निर्णय लिया जाए।

तलरूप (Topology)

कुर्ट लेविन के अनुसार जीवन दायरे का कोई निश्चित आकार नहीं होता। तलरूप जीवन दायरे की संरचना को बताता है। जीवन दायरे की संरचना उसमें उपस्थित कर्षण एवं सदिश के अनुसार बदलती रहती है। जिस प्रकार जीवन दायरे में उपस्थित कर्षण एवं सदिश में बदलाव आता है उसी के साथ-साथ जीवन दायरे की संरचना में भी बदलाव आते रहते हैं। जीवन दायरे के निरंतर परिवर्तन को ही तलरूप कहा जाता है।

गठन एवं पुनर्गठन (Organization Reorganization)

कर्षण एवं सदिश के गठन एवं पुनर्गठन से धारणा या अनुभूति विकसित होगी।

गति (Locomotion)

यह बलों को कम ज्यादा करने में लगे रहती है तथा यह कहा जा सकता है कि अनुभूति का पालन करना ही गति है। गति के रूप में हमें अधिगम की प्राप्ति होती है।

क्षेत्र अधिगम सिद्धांत (Field Theory) के अन्य नाम

  1. लक्ष्य का सिद्धांत
  2. अधिगम का तल रूप सिद्धांत
  3. प्राकृतिक दिशा का सिद्धांत
  4. सदिश का सिद्धांत
  5. सही दिशा का सिद्धांत
  6. समूह गतिकी का सिद्धांत
  7. व्यवहार गति का सिद्धांत
  8. गत्यात्मक विकास का सिद्धांत
  9. समूह गतिशीलता का सिद्धांत

 

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