अवधान (Attention)

अवधान (Attention) का सामान्य अर्थ होता है ध्यान देना। किसी व्यक्ति के मन के तीन प्रकार होते हैं। अर्धचेतन, अचेतन तथा चेतन मन। यदि हम मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो जब किसी व्यक्ति का चेतन मन उसकी इंद्रियों द्वारा ग्रहण किए गए किसी वस्तु, व्यक्ति या क्रिया पर केंद्रित होता है तो उसे अवधान कहते हैं। मनुष्य की इंद्रियों के अलग-अलग कार्य हैं जैसे आंखों से कई घटनाओं को देखना, कानों से कई प्रकार की आवाजें सुनना, नाक से कई प्रकार की गंध सुंघना तथा मुंह से कई प्रकार के स्वाद चखना आदि।

अवधान (Attention) पर विस्तार में कार्य करने वाले प्रथम व्यक्ति विलियम हैमिल्टन थे जिन्होंने 1859 में सर्वप्रथम इस पर कार्य किया।

मोरगन ने चेतना के दो भाग बताएं हैं

  • केंद्रीय चेतना
  • तटीय चेतना

उदाहरण के लिए

महाभारत में जब अर्जुन को मछली की आंख में निशाना लगाने को कहा गया तब अर्जुन का ध्यान केवल मछली की आंख पर था। मछली के अलावा उस सभा में कई लोग थे, राजकुमार थे, प्रजा थी, किंतु अर्जुन का ध्यान केवल मछली की आंख में था ना कि उसके आसपास की वस्तुओं पर। अर्जुन का जो ध्यान मछली की आंख पर था वह केंद्रीय चेतना के अंतर्गत आता है तथा उसके आसपास की वस्तुएं व्यक्ति एवं क्रियाएं तटीय चेतना के अंतर्गत आते हैं।

अवधान (Attention) की परिभाषा

विभिन्न मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिकों ने अवधान (अवधान-Attention) को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है।

  • मार्गन के अनुसार,
    “अवधान एक चयनात्मक मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम किसी उद्दीपक को अपनी चेतना के केंद्र में लाते हैं।”
  • मैकडूगल के अनुसार,
    “अवधान केवल उस इच्छा अथवा चेष्टा को कहते हैं जिसका प्रभाव हमारी ज्ञान प्रक्रिया पर पड़ता है।”
  • डमवील के अनुसार,
    “चेतना को दूसरी वस्तुओं के स्थान पर एक ही वस्तु की ओर केंद्रीकरण कर लेना ही अवधान है।”
  • मन के अनुसार,
    “अवधान एक अभिप्रेरणा युक्त प्रक्रिया है।”

अवधान (Attention) की प्रकृति एवं विशेषताएं

अवधान की प्रकृति एवं विशेषताएं निम्न हैं-

  1. यह एक मानसिक प्रक्रिया है।
  2. इसमें मानसिक तत्परता पाई जाती है।
  3. यह एक चयनात्मक प्रक्रिया है।
  4. यह एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है।
  5. इसका क्षेत्र सीमित होता है।
  6. इसकी समय सीमा सीमित होती है।
  7. यह एक खोजी (अन्वेषण) प्रवृत्ति का होता हैै।
  8. अवधान में अस्थिरता पाई जाती है।
  9. सावधान विश्लेषणात्मक एवं संश्लेषणात्मक दोनों रूप में पाया जाता है।
  10. अवधान की एक विशेष शारीरिक मुद्रा होती है।

 

अवधान (Attention) के प्रकार

ऐच्छिक अवधान

हमने रुचियों के दो प्रकार पड़े थे जिनमें से ऐच्छिक अवधानअर्जित रुचियों पर आधारित होता है। अर्जित रुचियां वे रुचियां होती हैं जो व्यक्ति में उसके समाज एवं पर्यावरणीय कारकों के अनुसार विकसित होती हैं। ऐच्छिक अवधान दो प्रकार का होता है- विचारित अवधान और अविचारित अवधान (Attention)।

विचारित अवधान- इसके अंतर्गत व्यक्ति किसी वस्तु व्यक्ति अथवा क्रिया के लिए विचार करके उस पर ध्यान लगाता है।

अविचारित अवधान- व्यक्ति के किसी वस्तु व्यक्ति अथवा क्रिया के लिए विचार करके उस पर ध्यान लगाने के पश्चात उसे पुनः उस पर ध्यान लगाने के लिए विचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। विचार करके ध्यान लगाने के कारण व्यक्ति को कुछ वस्तु व्यक्ति अथवा क्रिया पर ध्यान लगाने की आदत पड़ जाती है।

अनैच्छिक अवधान

अनैच्छिक अवधान जन्मजात रुचियों पर आधारित होते हैं। इस प्रकार की रुचियों में ध्यान लगाने के लिए किसी प्रकार के सामाजिक या वातावरणीय कारक की आवश्यकता नहीं होती। इसमें व्यक्ति का ध्यान स्वयं केंद्रित हो जाता है। अनैच्छिक अवधान दो प्रकार के होते हैं सहज अवधान और बाध्य अवधान।

सहज अवधान

इसके अंतर्गत मनुष्य अपनी मूल प्रवृत्तियों के अनुसार किसी व्यक्ति वस्तु अथवा क्रिया की ओर आकर्षित होता है तथा उसकी ओर ध्यान लगाता है। इस प्रकार के ध्यान को सहज अवधान कहते हैं।

बाध्य अवधान

कोई भी बाह्य वस्तु व्यक्ति अथवा क्रिया जो अपने विशेष गुण के कारण व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस प्रकार के आकर्षण से लगने वाले ध्यान को बाध्य अवधान कहते हैं।

अभ्यासिक अवधान

अभ्यासिका अवधान वह ध्यान है जो मनुष्य की आदतों पर निर्भर करता है। मनुष्य को जिस चीज की आदत होती है उस तरफ उसका ध्यान शीघ्र जाता है।

प्रक्रिया उन्मुख विचार के आधार पर अवधान को दो भागों में बांटा गया है-

  • चयनात्मक अवधान
  • संवृत अवधान

अवधान (Attention) को प्रभावित करने वाले कारक

बाह्य कारक

  • उद्दीपक की गति- यदि किसी उद्दीपक की गति अधिक होती है, तो उस उद्दीपक के प्रति व्यक्ति का ध्यान आकृष्ट होता है।
  • उद्दीपक की नवीनता- किसी भी प्रकार की नई वस्तु व्यक्ति अथवा कार्य की ओर मनुष्य आकर्षित होता है।
  • उद्दीपक की अवधि- किसी उद्दीपक की अवधि भी मनुष्य का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करती है। यदि कोई उद्दीपक अधिक अवधि तक मनुष्य के संपर्क में रहे तो स्वतः ही मनुष्य का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट हो जाता है।
  • उद्दीपक की विषमता- विषमता का तात्पर्य हुआ औरों से अलग होना। यदि कोई उद्दीपक अपने आसपास के अन्य उद्दीपकों से विषमता रखता है तो उसकी ओर ध्यान स्वतः केंद्रित हो जाता है।
  • उद्दीपक में परिवर्तन- किसी उद्दीपक में आया हुआ परिवर्तन भी मनुष्य का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करता है।
  • उद्दीपक की पुनरावृति- यदि कोई उद्दीपक बार-बार दिखाई दे तो मनुष्य का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट होता है।

आंतरिक कारक

  • ज्ञान- जिस किसी भी वस्तु व्यक्ति या क्रिया का मनुष्य ज्ञान रखता है उसकी ओर उसका स्वतः ध्यान आकृष्ट होता है।
  • रुचि- मनुष्य की जिस वस्तु क्रिया या व्यक्ति के प्रति रुचि होती है, उसका उसकी ओर ध्यान आकृष्ट होता है।
  • जिज्ञासा- जिस किसी भी व्यक्ति वस्तु या क्रिया को जानने की जिज्ञासा मनुष्य के अंदर होती है, उसके प्रति उसका ध्यान आकृष्ट होता है।
  • मूल प्रवृत्तियां- मनुष्य की मूल प्रवृत्तियां उसका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करती हैं।
  • संवेग- मनुष्य का ध्यान संवेग की ओर भी आकृष्ट होता है।
  • उत्तेजना- मनुष्य का ध्यान आकृष्ट करने के लिए उत्तेजना भी अपनी भूमिका निभाती है।

 

यह भी जानें-

अनौपचारिक शिक्षा

शिक्षा-की-संस्थाएं

shiksha

प्रत्यक्षीकरण का अर्थ

Scroll to Top