वेदांता दर्शन

वेदांता दर्शन हिंदू दर्शन के 6 महान विद्यालयों में से एक है। हिंदू दर्शन के विद्यालय हिंदुत्व को प्रोत्साहित करते हैं। वेदांता एक दर्शन है अर्थात एक विचारधारा है जिसमें उपनिषद में उठाए गए जीवन से संबंधित सवालों के उत्तर ढूंढने का जो प्रयास किया गया है वर्णित है। आध्यात्मिक चिंतन में वेदांत-सूत्रों का एक अमूल्य स्थान है। वेदांत-सूत्रों की रचना का कार्य आचार्य बादरायण द्वारा संपन्न किया गया। आचार्य बादरायण का असली नाम वेदव्यास था। वेदव्यास जी का नाम बादरायण बदरी वन से लक्षित प्रदेश में निवास के कारण पड़ा। वेदांत का आधार उपनिषद, ब्रह्म-सूत्र एवं गीता को माना गया है।

वेदांता का अर्थ

वेदांता का शाब्दिक अर्थ है वेद का अंत। वेदांत दो शब्दों से मिलकर बना है, वेद और अंत।

वेद + अंत

यहां वेद का अर्थ है ज्ञान तथा अंत का अर्थ है उपसंहार। अतः वेदांत का अर्थ है अंतिम ज्ञान की प्राप्ति करना। जिसने वेदांत के ज्ञान की प्राप्ति कर ली, उसके बाद उसे किसी भी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। वेदांत को श्रुति भी कहा जाता है। आधुनिक भारतीयों के अनुसार व्यास-सूत्र को ही वेदांत का आधार माना जाता है। वेदांत की उत्पत्ति उपनिषद से हुई है तथा वेदों में उसका अंत हुआ है।

वेदांता दर्शन का परिचय

हम यह मान सकते हैं कि वेदांता दर्शन का जन्म उपनिषद से हुआ। उपनिषद का अर्थ हुआ कोने में बैठकर कुछ जानना। उपनिषद में शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्य की वार्ता का वर्णन है। उपनिषद के अंदर कुछ ऐसे प्रश्न पूछे गए हैं जिनके उत्तर ढूंढ पाना बहुत मुश्किल कार्य है, जैसे मैं कौन हूं, ऐसी कौन सी चीज है जो कभी नष्ट नहीं हो सकती आदि। कुल 108 उपनिषद है तथा इन उपनिषदों में इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर ढूंढने का प्रयास किया गया है।

उपनिषद में जो प्रश्न उठाए गए उनके उत्तरों को खोजने के लिए जो प्रयास किए गए वह वेदांत है। वेदांता में जो चीजें बदलती रहती हैं उन्हें माया कहा जाता है, जैसे, शरीर, मस्तिष्क आदि। अतः वे चीजें जो बदलती रहती हैं, एक तरह की माया है एक तरह का भ्रम है, वेदांता का यह मानना है कि ब्रह्मा आपके स्वयं के अंदर है।

ब्रह्मा का अर्थ है आत्मा। आत्मा जो सदैव एक रहती है जिसमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं होता। आत्मा ब्रह्मा का हिस्सा है। जब इस प्रकार की सत्य की प्राप्ति होती है तो मनुष्य हर प्रकार की मोह-माया से मुक्त हो जाता है। वेदांता में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य या लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करना है। वेदांता दर्शन का लक्ष्य है कि शिक्षक या शिक्षार्थी इस सांसारिक मोह-माया से पूर्ण रूप से मुक्त हो जाएं अर्थात वह मोक्ष की प्राप्ति कर लें।

वेदांता में दो शब्दों- परा एवं पराब्रह्मा का प्रयोग किया गया है जिनका अर्थ है –

परा– परा का तात्पर्य हुआ अध्यात्म से जुड़ा हुआ।

पराब्रह्मा– वह जो आपकी सोच, बोल व जबान से हट के हो अर्थात जो आपकी ना तो सोच में आ सके, न जवान में आ सके और ना ही जिसे आप शब्दों में व्यक्त कर सकें।

वेदांता दर्शन- शिक्षा के उद्देश्य

वेदांता दर्शन में शिक्षा के मुख्य दो उद्देश्य बताये गए हैं, जो निम्न् हैं –

  1. परा उद्देश्य – परा उद्देश्य का मुख्य उद्देश्य है मुक्ति अर्थात मोक्ष की प्राप्ति करना।
  2. अपरा उद्देश्य – अपरा उद्देश्य में परा उद्देश्य को प्राप्त करने के मार्ग बताए गए हैं।अपरा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्न उपाय बताये गए हैं –

शारीरिक विकास- मोक्ष की प्राप्ति के लिए मनुष्य को अपना शारीरिक विकास एवं शुद्धिकरण करना होता है‌। हमारे जितने भी दर्शन हैं उन सब में शारीरिक विकास को बढ़ावा दिया गया है। सभी दर्शन में बालक का शारीरिक विकास बहुत महत्वपूर्ण है। किसी भी व्यक्ति को जिंदगी में कुछ भी हासिल करना हो तो सर्वप्रथम उसको शरीर से मजबूत होना आवश्यक है।

वेदांता दर्शन के अंतर्गत केवल मनुष्य के शारीरिक विकास की ही बात नहीं की जाती अपितु इसके साथ साथ उसके शुद्धीकरण को भी महत्वता दी जाती है।

मानसिक विकास- बालक के मानसिक स्तर को बढ़ाना पड़ेगा ताकि वह सच्चे ज्ञान को प्राप्त कर सके जिसकी सहायता सेवा परम लक्ष्य की प्राप्ति कर सकें।

नैतिक विकास – एक रात में जो कि ब्रह्मा का हिस्सा है तथा कर्मों में फंस गई है, कर्मों का तात्पर्य हुआ हर प्रकार के कार्य करना चाहे अच्छे हो या बुरे। अपने द्वारा किए गए कर्मों के फल को पाने के लिए आत्मा को जीवन मरण के चक्र में बंधे रहना पड़ता है। नैतिक विकास के लिए मानसिक शुद्धता होना आवश्यक है।

व्यवसायिक शिक्षा – जीविकोपार्जन के लिए व्यवसायिक शिक्षा आवश्यक है। मनुष्य को जीविकोपार्जन के लिए अपने कौशल का विकास करना होता है। वेदांता का मानना है कि मनुष्य अपने मूल आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं कर सके जिसका एकमात्र उपाय है, जीविकोपार्जन के लिए व्यवसायिक शिक्षा की सुविधा।

आध्यात्मिक विकास – आध्यात्मिक विकास के लिए मनुष्य ऐसी कर्मों की ओर अग्रसर होगा जिसकी सहायता से वह ब्रह्मा से जुड़ सकें।

वेदांता दर्शन का पाठ्यक्रम

वेदांता अपनी पाठ्यक्रम का निर्माण इस प्रकार से करती है जिसकी सहायता से मनुष्य या बालक ब्रह्मा को पा सके, अर्थात मुक्ति को प्राप्त हो सके। वेदांता के पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बालक को मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग का ज्ञान देना है।

वेदांता के पाठ्यक्रम को निम्न दो भागों में विभाजित किया गया है-

परा विद्या,

अपरा विद्या

परा विद्या (अध्यात्म से संबंधित विद्या)

साहित्य का अध्ययन

दर्शन का अध्ययन

धार्मिक ज्ञान- उपनिषद, ब्रह्म सूत्र, भगवत गीता, वेद

अध्यात्म से संबंधित कुछ व्यवहारिक गतिविधियां- योग ( अष्टांगिक मार्ग- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहारा, धारणा, ध्यान, समाधि ) मन, मस्तिष्क एवं शरीर के मध्य एक सामंजस्य स्थापित करने हेतु। योग का अर्थ हुआ सही राह पर चलना।

कर्म योगा- इस प्रकार के कर्म करने है जो मोक्ष की और ले जाए।

ज्ञान योगा- सही ज्ञान प्राप्त करना

राज योगा- राजयोग सभी योगों का राजा कहलाता है। इस योग में सभी प्रकार के योगों की कोई न कोई अनुभूति अवश्य हो जाती है।

भक्ति योगा- औरों के लिए अच्छी अनुभूति या भाव प्रकट करना।

अपरा विद्या ( वास्तविक जीवन अर्थात दुनिया से संबंधित विद्या)

भाषाएं, गणित, व्यवसायिक शिक्षा, वैद्यक शास्त्र

शिक्षण की विधियां

ज्ञान प्राप्त करने की अवस्थाएं निम्न हैं –

श्रवण- शिक्षकों को सुनना

मनन – ज्ञान के बारे में सोचना, स्वाध्याय करना।

निधि ध्यासन– प्राप्त किए गए ज्ञान को अपने व्यवहार में लाना। दैनिक क्रिया में उसका प्रयोग करना। निधि ध्यान सन मोक्ष की प्राप्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब बालक ज्ञान का प्रयोग अपने जिंदगी में इस्तेमाल करना तथा ज्ञान की सहायता से अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना निधि दर्शन है।

उपसंहार

वेदांता एक प्रकार का दर्शन है, एक विचारधारा है जिसमें मनुष्य के जीवन का मुख्य लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति बताया गया है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्ग बताये गए हैं। वेदांता में मोक्ष की प्राप्ति का तात्पर्य है कि ब्रह्म को प्राप्त करना। ब्रह्म, जिसका अर्थ है आत्मा। आत्मा जो सदैव चेतन अवस्था में रहती है, अर्थात आत्मा वह है जो सदैव एक ही अवस्था में रहती है। आत्मा ना मरती है, ना नस्ट होती है, यह सदैव शरीर बदलती रहती है। शरीर, मस्तिष्क आदि अपनी अवस्था चेतन से अचेतन में बदलते रहते हैं। वेदांता में जो चीज़ें बदलती रहती हैं उसे माया कहा गया है।

आत्मा जब जीवन मरण के चक्र से होकर हमेसा के लिए ब्रह्म में लीन हो जाती है तब उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। वेदांता में जीवन-मरण के चक्र से मुक्त होने के मार्ग बताये गए हैं जिससे आत्मा सदैव ब्रह्म में लीन हो जाए। हमारे कर्म हैं जो हमें इस जीवन-मरण के चक्र से बांधे हुए है और यही कर्म हमें इस जीवन-मरण के चक्र से मुक्त करते है तथा सदा के लिए ब्रह्म में लीन कर देता है। अतः वेदांता में बताया गया है कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए हमें किस प्रकार के कार्य करने चाहिए।

 

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