व्यक्तित्व का अर्थ एवं परिभाषाएं

सामान्यतः देखा जाए तो व्यक्तित्व का अर्थ मनुष्य के बाहरी रूप या शारीरिक बनावट व उसके रंग-रूप, मोटाई, लंबाई आदि शारीरिक संरचना से है। शारीरिक संरचना के साथ-साथ मनुष्य के व्यवहार एवं उसकी बोली को भी व्यक्तित्व में शामिल किया जाता है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से ‘व्यक्तित्व’ व्यक्ति के समस्त व्यवहार का दर्पण है, अर्थात मनुष्य के व्यक्तित्व (Personality) का निर्धारण उसके द्वारा किए गए कार्य, गतिविधियां, व्यवहार, आचार-विचार आदि शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक पक्षों द्वारा किया जाता है। उपलब्ध साक्ष्यों द्वारा प्राचीन भारतीय आदि ग्रंथ वेद के अनुसार मनुष्य के व्यक्तित्व का अर्थ किसी व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा के विकास के रूप में माना गया है। उपनिषदों के अनुसार व्यक्तित्व का अर्थ किसी व्यक्ति के भौतिक आत्म, मानसिक आत्म और आध्यात्मिक आत्म का योग माना गया है। भारतीय दर्शनों के अनुसार मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार और आत्मा का जितना अधिक विकास होगा उस मनुष्य का व्यक्तित्व उतना ही अधिक विकसित होगा।

व्यक्तित्व का अर्थ

व्यक्तित्व को हम उसके शाब्दिक एवं व्यापक रूप में समझ सकते हैं। अतः व्यक्तित्व का अर्थ निम्न आधारों पर व्यक्त किया गया-

व्यक्तित्व (Personality) का शाब्दिक अर्थ

‘व्यक्तित्व’ आंग्ल भाषा में ‘पर्सनैलिटी (Personality)’ का हिंदी रूपांतरण है। पर्सनैलिटी शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के ‘परसोना (Persona)‘ शब्द से हुई है।

परसोना शब्द का शाब्दिक अर्थ है नकाब या मुखौटा।

नकाब या मुखोटे से तात्पर्य है नकली चेहरा। माना जाता है कि यूनानी लोग मुखौटा लगाकर मंच पर अभिनय किया करते थे। मुखोटे का प्रयोग इसलिए किया जाता था ताकि उनका असली चेहरा लोगों के सामने ना आ पाए। मुखोटे की सहायता से मंच पर अभिनय करने वाले अभिनयकर्ता अपनी असली पहचान छुपाते थे। मुखोटे के कारण यह जान पाना मुश्किल होता था कि अभिनयकर्ता कोई दास है या विदूषक है या कोई राजा या रानी या कोई राजनर्तकी है।

व्यक्तित्व (Personality) का व्यापक अर्थ

प्राचीन काल में यूनानियों द्वारा व्यक्तित्व का तात्पर्य व्यक्ति के बाह्य स्वरूप से था। परंतु धीरे-धीरे व्यक्तित्व के अंतर्गत व्यक्ति के आंतरिक स्वरूप को भी शामिल कर लिया गया।

व्यक्तित्व शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है

व्यक्ति + तत्व

व्यक्ति के अंतर्गत सकारात्मक एवं नकारात्मक तत्व पाए जाते हैं। व्यक्ति के सकारात्मक एवं नकारात्मक तत्वों के योग को व्यक्तित्व कहा जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्ति के आंतरिक एवं बाह्य रूप के सकारात्मक एवं नकारात्मक तत्वों का संपूर्ण योग व्यक्तित्व है।

व्यक्तित्व (Personality) की परिभाषा

विभिन्न मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिकों व्यक्तित्व को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है।

विलियम वर्ड्सवर्थ के अनुसार,
“व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहार की समग्र विशेषता है।”

वैलेंटाइन के अनुसार,
“व्यक्तित्व जन्मजात और अर्जित प्रवृत्तियों का योग है।”

बीसॉज एवं बीसॉज के अनुसार,

“व्यक्तित्व, मनुष्य की आदतों, दृष्टिकोणों तथा विशेषताओं का संगठन है। यह जीवशास्त्र, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों में संयुक्त उपक्रम द्वारा उत्पन्न होता है।”

ड्रेवर के अनुसार,
“व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग, व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के सुसंगठित और गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है, जिसे यह अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान-प्रदान में व्यक्त करता है।”

बिग व हंट के अनुसार,
“व्यक्तित्व एक व्यक्ति के संपूर्ण व्यवहार, प्रतिमान और इसकी विशेषताओं के योग का उल्लेख करता है।”

मन के अनुसार,
“व्यक्तित्व की परिभाषा, व्यक्ति के ढांचे व्यवहार की विधियां, रुचियों, अभिव्रतियों, क्षमताओं, योग्यताओं और कुशलताओं के सबसे विशिष्ट एकीकरण के रूप में की जा सकती है।”

ऑलपोर्ट के अनुसार,
“व्यक्तित्व व्यक्ति में उन मनोशारीरिक अवस्थाओं का गतिशील संगठन है, जो उसके पर्यावरण के साथ उसका अद्वितीय सामंजस्य निर्धारित करता है।”

डेशिल के अनुसार,
“व्यक्तित्व व्यक्ति के संगठित व्यवहार का संपूर्ण चित्र होता है।”

जे.पी. गिलफोर्ड के अनुसार,
“व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है।”

रेक्स रॉक के अनुसार,
“व्यक्तित्व समाज द्वारा मान्य सामान्य गुणों का संतुलन है।”

बोरिंग के अनुसार,
“व्यक्तित्व व्यक्ति का अपने वातावरण के साथ उचित समायोजन है।”

उपसंहार

व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के द्वारा किए गए उसके समग्र आंतरिक एवं बाह्य अर्थात उसके शारीरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक व्यवहारों के सकारात्मक एवं नकारात्मक तत्वों का योग है।

किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व सामाजिक मूल्यों द्वारा निर्धारित होता है। सामाजिक मूल्यों का तात्पर्य समाज द्वारा निर्धारित किए गए मानकों से है। समाज किसी व्यक्ति के बाह्य एवं आंतरिक तत्व के आधार पर उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करता है।

व्यक्ति में समय के साथ-साथ कुछ ऐसी विशेषताएं स्थापित हो जाती हैं जो उस व्यक्ति को औरों से भिन्न करती है इस प्रकार की समस्त विशेषताओं के समूह को संगठित कर उसके द्वारा किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्धारित होता है।

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