चिंतन (Thinking)

चिंतन (Thinking) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका आरंभ समस्या से होता है तथा अंत उस समस्या के समाधान से होता है। यदि कोई व्यक्ति अपने संज्ञानात्मक पक्ष या ज्ञानात्मक पक्ष के द्वारा अपनी मानसिक क्रिया का प्रयोग किसी समस्या के समाधान के लिए करता है तो इस प्रकार की प्रक्रिया को चिंतन (Thinking) कहा जाता है।

किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान जब व्यक्ति अपने विचारों के द्वारा, प्रतीकों के द्वारा, सम्प्रत्ययों के द्वारा मानसिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए निकालता है तो इस प्रक्रिया को चिंतन कहते हैं।

मानव में 3 पक्ष होते हैं ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक। चिंतन का सीधा संबंध ज्ञानात्मक पक्ष से होता है। चिंतन को एक ज्ञानात्मक पहलू माना गया है।

यदि कोई व्यक्ति अपने ज्ञानात्मक पहलू के द्वारा किसी प्रकार की समस्या आने पर अपने मानसिक शक्ति का प्रयोग कर अपने विचारों, संप्रत्ययों, प्रतीकों, प्रतिबिंबों या प्रतिमाओं के द्वारा उस समस्या का समाधान करते हैं तो इस प्रक्रिया को ज्ञानात्मक पक्ष द्वारा की गई चिंतन की प्रक्रिया कहते हैं। विचारों, संप्रत्ययों, प्रतीकों, प्रतिबिंबों व प्रतिमाओं को चिंतन का साधन माना गया है जिनकी सहायता से यदि हम किसी समस्या का समाधान निकालते हैं तो उस प्रक्रिया को चिंतन कहा जाता है।

Thinking
Thinking

चिंतन (Thinking) की परिभाषाएं

राॅस के अनुसार,
“चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है।”

गिलफोर्ड के अनुसार,
“चिंतन एक प्रतीकात्मक व्यवहार है। यह सभी प्रकार की वस्तुओं और विषयों से संबंधित है।”
(“thinking is a symbolic behaviour for all thinking deals with substitutes for things.”)

वैलेंटाइन के अनुसार,
“चिंतन शब्द का प्रयोग उस क्रिया के लिए किया जाना चाहिए जिसमें विशेष रूप से श्रृंखलाबद्ध विचार किसी लक्ष्य या उद्देश्य की ओर प्रवाहित होते हैं।”
(“it is well to keep the term thinking for an activity which consists essentially of a connected flow of ideas which are directed towards some end or purpose.”)

वुडवर्थ के अनुसार,
“चिंतन किसी समस्या का हल खोजने की मानसिक क्रिया है।”
(“thinking is mental exploration for finding out the solution of a problem.”)

गैरेट के अनुसार,
“चिंतन एक प्रकार का अव्यक्त एवं रहस्य पूर्ण व्यवहार होता है, जिसमें सामान्य रूप से प्रतीकों (बिम्बों विचारों एवं प्रत्ययों) का प्रयोग होता है।”
(“thinking is behaviour which is often implicit and hidden and in which symbols (images ideas concepts) are ordinarily employed.”)

चिंतन (Thinking) के प्रकार

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने चिंतन के निम्न पांच प्रकार बताए हैं-

प्रत्यक्षात्मक चिंतन

प्रत्यक्षात्मक चिंतन जिसे हम मूर्त चिंतन के नाम से भी जानते हैं। यह चिंतन संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण के द्वारा प्राप्त मूर्त अनुभवों पर आधारित होता है। इस प्रकार के चिंतन के अंतर्गत व्यक्ति किसी नए उद्दीपक का पूर्व अनुभव प्राप्त प्रत्यक्ष उद्दीपकों से संबंध स्थापित करने का प्रयत्न करता है। व्यक्ति पूर्व अनुभव आधारित उद्दीपक के द्वारा नए उद्दीपक को देखने-समझने का प्रयास करता है। इस प्रकार के चिंतन को सबसे निम्न प्रकार का चिंतन कहा जाता है तथा शिशुओं के द्वारा इसी प्रकार का चिंतन किया जाता है।

कल्पनात्मक चिंतन

इसके नाम से पता चलता है कि वह चिंतन जो कल्पनाओं पर आधारित हो। यह चिंतन उद्दीपक ओं की अनुपस्थिति में होता है इसके अंतर्गत हम अपने पूर्व अनुभव की स्मृति के आधार पर चिंतन करते हैं। इसके अंतर्गत व्यक्ति किसी भी प्रकार की अपने पूर्वानुभव पर आधारित कल्पना करता है और उससे संबंधित भविष्य की समस्याओं पर विचार करता है।

प्रत्यात्मक चिंतन

जब कोई उद्दीपक निरंतर किसी व्यक्ति के संपर्क में आता है तो उस उद्दीपक का मानव को विश्लेषण संश्लेषण तथा सामान्य करण हो जाता है जिसके फलस्वरूप मानव मस्तिष्क में इसका संप्रत्यय स्थापित हो जाता है। इस प्रकार से पूर्व निर्धारित संप्रत्यय पर ही प्रत्यात्मक चिंतन आधारित होता है। इस प्रकार के चिंतन में मनुष्य के मस्तिष्क में स्थापित पूर्व संप्रत्यय की सहायता से नए संप्रत्ययों का निर्माण किया जाता है।

तार्किक चिंतन

तार्किक चिंतन में तर्क के आधार पर चिंतन किया जाता है। इस प्रकार का चिंतन समस्या के समाधान पर आधारित होता है। शिक्षा शास्त्री जॉन डीवी ने तार्किक चिंतन को विचारात्मक चिंतन की संज्ञा दी। उनके अनुसार चिंतन की प्रक्रिया समस्या के समाधान की प्रक्रिया होती है। इस प्रकार के चिंतन में व्यक्ति तर्क के आधार पर समस्या का समाधान रुकता है पता है इस प्रकार के चिंतन को उच्च कोटि का चिंतन कहा जाता है।

रचनात्मक चिंतन

रचनात्मक चिंतन को सृजनात्मक चिंतन भी कहा जाता है। इस प्रकार के चिंतन को उच्चतम चिंतन का रूप माना जाता है। इस प्रकार के चिंतन में तथ्यों के आधार पर नियम बनाए जाते हैं तथा सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जाता है। जितनी भी नई नई वैज्ञानिक खोज एवं शिकार होते हैं वे सब रचनात्मक चिंतन द्वारा ही होते हैं। रचनात्मक चिंतन को जे.पी. गिल्फोर्ड ने अपसारी चिंतन का नाम दिया। रचनात्मक चिंतन के 4 पद होते हैं-

(i) तैयारी, (ii) गर्भीकरण, (iii) स्फुरण, (iv) सत्यापन।

चिंतन (Thinking) के पद

चिंतन के पदों के बारे में विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न पद निश्चित किए हैं।

वुडवर्थ ने चिंतन की प्रक्रिया के निम्न पांच पद बताए हैं-

  • लक्ष्य की ओर उन्मुख होना
  • लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना
  • पूर्व निरीक्षक तथ्यों एवं अनुभव का स्मरण करना
  • पूर्व तथ्यों एवं अनुभवों को नए रूप में संयोजित करना
  • आंतरिक वाक्गतियों एवं मुद्राओं का प्रयोग करना

जॉन डी.वी. के अनुसार चिंतन की प्रक्रिया समस्या समाधान की प्रक्रिया होती है इसके संपन्न होने पर यह निम्न 5 पदों का अनुसरण करती है।

  • समस्या की उपस्थिति,
  • समस्या का स्पष्ट ज्ञान,
  • संभावित समाधान,
  • संभावित समाधानों का परीक्षण एवं उपयुक्त समाधान का चयन
  • समाधान का प्रयोग।

इन मनोवैज्ञानिकों के अलावा ह्यूजेज ने भी चिंतन की प्रक्रिया के लिए पद बताए। इन्होंने चिंतन की प्रक्रिया के चार पद बताए हैं जो कि वर्तमान में अन्य मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिए गए पदों से अपेक्षाकृत अधिक मान्यता प्राप्त हैं।

  • समस्या का सही आंकलन
  • समस्या से संबंधित तथ्यों का संकलन
  • निष्कर्ष पर पहुंचा
  • निष्कर्ष का परीक्षण

आइए शिक्षा की इन 4 पदों को विस्तार में जाने-

समस्या का सही आंकलन

ह्यूजेज ने बताया है कि सर्वप्रथम व्यक्ति के समक्ष कोई समस्या या बाधा उत्पन्न होती है। सर्वप्रथम व्यक्ति कुछ समस्या या बाधा को समझने का प्रयास करता है तत्पश्चात वह उस समस्या के निदान या उपायों पर विचार करता है।

समस्या से संबंधित तथ्यों का संकलन

ह्यूजेज ने बताया कि समस्या का पता लगने के पश्चात व्यक्ति उस समस्या से संबंधित तथ्यों एवं सूचनाओं को संग्रहित कर उन पर विचार करता है तथा संग्रहित तथ्यों एवं सूचनाओं में से उन तथ्यों एवं सूचनाओं को एकत्रित करता है जो इसकी समस्या के समाधान में सहायक सिद्ध हो सके। इस प्रकार के तथ्यों एवं सूचनाओं का चयन व्यक्ति अपने पूरा अनुभव द्वारा या किसी अन्य आधार पर कर सकता है।

निष्कर्ष पर पहुंचना

ह्यूजेज ने बताया कि समस्या से संबंधित तथ्यों के संकलन के पश्चात व्यक्ति उन सभी तथ्यों का विश्लेषण करता है तथा चयनित तथ्यों एवं सूचनाओं को एक-एक कर समस्या के समाधान में लगाता है जिसके द्वारा अंत में हुआ किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है।

निष्कर्ष का परीक्षण

ह्यूजेज नहीं बताया कि निष्कर्ष पर पहुंचने के पश्चात व्यक्ति यह देखता है कि उसके द्वारा निकाले गए निष्कर्ष से उस समस्या का सही समाधान होता है या नहीं। यदि प्राप्त निष्कर्ष से समस्या का समाधान हो जाता है तो सही अन्यथा उन्हें चिंतन शुरू हो जाता है तथा यह प्रक्रिया पुनः शुरू हो जाती है।

चिंतन (Thinking) की विशेषताएं

  • चिंतन (Thinking) एक मानसिक प्रक्रिया है।
  • चिंतन (Thinking) एक ज्ञानात्मक पहलू है।
  • चिंतन (Thinking) एक उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया है।
  • यह एक समस्या समाधान की प्रक्रिया है।
  • चिंतन (Thinking) के दौरान बाह्य क्रियाएं लगभग बंद हो जाती है।
  • यह एक प्रतीकात्मक क्रिया है।
  • चिंतन (Thinking) अदृश्य होता है।
  • चिंतन (Thinking) खोजपूर्ण प्रवृत्ति का होता है।

शिक्षा के क्षेत्र में चिंतन (Thinking)

शिक्षा के क्षेत्र में चिंतन का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। एक बालक के जीवन में शिक्षा की शुरुआत प्रत्यक्ष विधि द्वारा होती है किंतु जैसे जैसे वह बड़ा होता है और उसके अनुभव बढ़ते जाते हैं वह अपने पूर्वानुभव के आधार पर ज्ञान प्राप्त करने लग जाता है। इस प्रकार से ज्ञान को प्राप्त करने के लिए बालक को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं का समाधान बालक चिंतन द्वारा करता है। पता है हमें शिक्षा के क्षेत्र में बालकों के चिंतन का विकास करना आवश्यक है। बालकों मैं चिंतन शक्ति के विकास के उपाय निम्न हैं।

भाषा विकास

भाषा का अपना अलग महत्व है। भाषा के द्वारा ही प्रतिमा एवं प्रत्यय के मध्य संबंध स्थापित किया जा सकता है। कहा जाता है कि जिस बालक की भाषा पर जितनी अधिक पकड़ होगी वह उतना अधिक अच्छे से चिंतन करते हैं। अतः बच्चों में चिंतन का विकास करने के लिए सर्वप्रथम उनको भाषा का सही ज्ञान कराना आवश्यक है।

स्पष्ट ज्ञान का विकास

किसी भी प्रकार के ज्ञान का स्पष्ट होना आवश्यक है। बच्चों को हम जितना अधिक एवं स्पष्ट ज्ञान देंगे वे उस ज्ञान का उतने ही अच्छे रूप में चिंतन कर सकेंगे। अतः बच्चों को प्रॉब्लम से ही स्पष्ट ज्ञान दिया जाना चाहिए।

समस्या समाधान विधि का प्रयोग

किसी भी प्रकार की समस्या के उत्पन्न होने से चिंतन की प्रक्रिया शुरू होती है तथा समस्या समाधान के साथ समाप्त होती है। अतः बच्चों के चिंतन विकास के लिए बच्चों को ज्ञान देने के पश्चात समस्या समाधान विधि से पढ़ाया जाना चाहिए।

प्रेरणा रुचि एवं अवधान का प्रयोग

किसी भी चीज को सीखने के लिए बच्चे को उसके प्रति अभिप्रेरित होना, उसके प्रति रुचि होना तथा उस पर ध्यान होना आवश्यक है। इन सब के अभाव में समस्या का उत्पन्न होना संभव नहीं। जहां समस्या नहीं वहां चिंतन नहीं। अतः चिंतन के विकास के लिए बच्चों को सीखने के लिए अभिप्रेरित होना, रुचि रखना तथा ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।

विचारात्मक प्रश्नों का प्रयोग

कक्षा कक्ष में शिक्षकों को शिक्षार्थियों से विचारात्मक प्रश्न पूछे जाने चाहिए। विचारात्मक प्रश्न के जवाब देने के लिए बच्चों को विचार करना पड़ेगा जिससे उनके चिंतन का विकास होगा।

स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अवसर

जैसे-जैसे बच्चा ज्ञान प्राप्त करता है और बड़ा होता है उसके समक्ष विभिन्न समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं। इन समस्याओं के समाधान बच्चों को सहन करने देना चाहिए तथा बच्चों को उनके विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। इससे वह चिंतन के लिए प्रशिक्षित होते हैं।

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