प्राचीन काल के मानचित्र कला ने इतनी प्रगति कर ली थी कि मध्यकाल में आते-आते मानचित्रकला के कार्य में रुकावट आ गयी जिस कारण हम मध्यकाल को दो भागों में बाँट सकते हैं।
1. पूर्व-मध्यकालीन मानचित्रकला (Purv-Madhykaalin Maanchitrkla) (400-1250 ई.)
2. उत्तर मध्यकालीन मानचित्रकला (1250-1700 ई.)
पूर्व-मध्यकालीन मानचित्रकला (Purv-Madhykaalin Maanchitrkla)
पूर्व-मध्यकाल के समय को अँधेरे-युग के नाम से भी जाना जाता है। इस काल में रोमन साम्राज्य के पतन के बाद अन्य विषयों के साथ-साथ मानचित्रकला (Purv-Madhykaalin Maanchitrkla) के कार्य की प्रगति में भी रुकावट आ गयी।
ये युग अंध-भक्ति का युग बन गया था। इस युग में आम नागरिक के साथ-साथ भूगोलवेत्ता भी ईशाई धर्म के प्रति निष्ठावान एवं ईशाई धर्म ग्रंथों में लिखी बातों को पूरी तरह से सत्य मानने लग गए थे, जिस कारण से मानचित्रकला के विकास में रुकावट आ गयी तथा पूर्व ज्ञान भी समाप्त होने लग गया।
धर्म के नाम पर लोग इतने अंधे हो गए थे कि वे पृथ्वी को गोलाकार मानने के बजाय उसे सपाट एवं वृत्ताकार तस्तरी के समान मानने लग गए। इस युग में यरुसलेम को संसार का केंद्र माना जाने लगा था। इस काल में मानचित्रकला के अवनत्ति को निम्न मानचित्रों के अध्यन्न से समझ सकते हैं।
टी-इन-ओ मानचित्र
रोमन साम्राज्य द्वारा बनाये गए मानचित्र ऑरबिस टेरारम को पूर्व-मध्यकाल में इशाई धर्म ग्रन्थ के अनुसार परिवर्तित करके एक बहुत आसान सा रूप दे दिया गया तथा भौगोलिक दृष्टि से भी इसे पूर्ण रूप से पृथक कर दिया गया। इसके नाम को परिवर्तित करके ऑरबिस के अंग्रजी का पहला शब्द ‘O’ और टेरारम के अंग्रेजी का पहला शब्द ‘T’ को लेकर टी-इन-ओ नाम दिया गया। अतः पूर्व-मध्यकाल में ऑरबिस टेरारम मानचित्र का रूप व आकार बदल कर उसे टी-इन-ओ मानचित्र रख दिया गया।
टी-इन-ओ का तात्पर्य हुआ कि ओ में टी जो की इस मानचित्र के बारे में बताता है। मानचित्र को देख कर प्रतीत होता है कि जैसे अंग्रेजी के शब्द ओ (O) के अंदर अंग्रेजी के शब्द टी (T) को रखा गया हो। इस मानचित्र में यरुसलेम को संसार का केंद्र बताया गया है।
इस मानचित्र के ऊपरी भाग में एशिया तथा नीचे के आधे भाग में यूरोप तथा अफ्रीका को लगभग समान क्षेत्रफल का दिखाया गया है। मानचित्र के सबसे ऊपर की ओर स्वर्ग दिखाया गया है तथा स्वर्ग में आदम और हव्वा को एक वृक्ष के पास खड़ा दिखाया गया है। मानचित्र के शीर्ष पर पूर्व दिशा अंकित है।
सेंट बीट्स का मानचित्र
यह मानचित्र स्पेन के सेंट बीट्स ने 776 में रोमन ऑरबिस टेरारम मानचित्र में ईशाई धर्म ग्रंथों की शिक्षा एवं उपदेशों के आधार पर परिवर्तन लाकर बनाया। सेंट बीट्स मानचित्र में टी-इन-ओ मानचित्र की तरह स्वर्ग, आदम हव्वा तथा वर्जित वृक्ष को दिखाया गया है। इन सब के अतिरिक्त उन्होंने अपने मानचित्र में स्वर्ग की चार नदियों- यांग्टिसी, गंगा, दजला व फरात को भी दिखाया है।
हेयरफ़ोर्ड का मानचित्र
हेयरफ़ोर्ड का मानचित्र पूर्व-मध्यकाल (Purv-Madhykaalin Maanchitrkla) के चक्र मानचित्रों या मैप्पा मुण्डी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मानचित्र का व्यास 1.5 मीटर से अधिक है। इस मानचित्र को ईशाई धर्म से सम्बंधित वस्तुओं एवं स्थानों की प्रतिमाओं से सजाया गया है, जैसे- बाबेल की मीनार, नोह की नौका आदि। इस मानचित्र में पुरानी कथाओं के आधार पर अफ्रीका के दक्षिणी किनारे के समीपवर्ती स्थानों में दैत्य-दानवों की आकृतियाँ बनाई गई हैं, जिनके शरीर आधे मनुष्य के तथा आधे जानवर के थे। इस मानचित्र में पूर्व मध्यकाल की मान्यताएं एवं ईशाई धर्म ग्रंथों का समावेश है।
एब्सटॉर्फ का मानचित्र
इस मानचित्र का व्यास 4 मीटर के आस-पास का है। यह मानचित्र हेयर फ़ोर्ड के मानचित्र से थोड़ा भिन्न है। इस मानचित्र को हज़रत ईशामसीह के शरीर के आकार से प्रदर्शित किया गया है। इस मानचित्र में ईशामसीह का सिर, दोनों हाथ और दोनों पैर मानचित्र की वृताकार सीमा के थोड़ा बाहर निकले हुए दिखाई देते हैं।
अरबी मानचित्रकला
जिस समय (Purv-Madhykaalin Maanchitrkla) ईशाई धर्मावलम्बी मानचित्रकला के स्थान पर धर्म को आधार मानकर मानचित्र निर्माण कर रहे थे, उस समय अरब के विद्वान यूनानी विद्वानों के मानचित्रकला की परम्परा का अनुसरण करते हुए मानचित्रकला को विकसित कर रहे थे। अरब में मानचित्रकला के विकसित होने के तीन मुख्य कारण थे –
1 – यूनानी संस्कृति वाले देश जैसे, ईरान, इराक व सीरिया आदि का अरब साम्राज्य में शामिल होना, जिस से अरब के विद्वानों को प्राचीन यूनानियों की कृतियाँ प्राप्त हो गयी। यूनानी विद्वान टॉलेमी के द्वारा लिखी गयी पुस्तक ज्योग्राफिया भी अरब के विद्वानों को प्राप्त हुई जिसे उन्होंने अरबी भाषा में अनुवाद किया। भारतीय विद्वानों के ग्रन्थ भी अरब विद्वानों को प्राप्त थे।
2 – अरब देशों में रात्रि का समय स्वच्छ रहने की वजह से यहां के विद्वानों को खगोलीय वेध लेने में आसानी होती थी।
3 – इस्लाम धर्म के अनुसार हर मस्जिद का द्वार मक्का की और होना चाहिए। अतः इनके लिए अक्षांशीय एवं देशांतरीय रेखाओं का पता लगाना आवश्यक हो गया था।
पूर्व-मध्यकालीन अरबी मानचित्रकला (Purv-Madhykaalin Maanchitrkla) में इदरीसी नामक विद्वान का संसार मानचित्र बहुत महत्वपूर्ण है, जो की उसने 1154 में सिसली के शासक – रोजर द्वितीय के दरबार में बनाया था। इस मानचित्र को एक आयताकार प्रक्षेप पर बनाया गया जिसके ऊपर दक्षिण दिशा दिखाई गयी।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- पूर्व-मध्यकाल के समय को अँधेरे-युग के नाम से भी जाना जाता है।
- पूर्व-मध्यकाल में ऑरबिस टेरारम मानचित्र का रूप व आकार बदल कर उसे टी-इन-ओ मानचित्र रख दिया गया।
- सेंट बीट्स ने अपने मानचित्र में स्वर्ग की चार नदियों- यांग्टिसी, गंगा, दजला व फरात को भी दिखाया है।
- हेयरफ़ोर्ड के मानचित्र का व्यास 1.5 मीटर से अधिक है।
- एब्सटॉर्फ के मानचित्र का व्यास 4 मीटर के आस पास का है।
- एब्सटॉर्फ के मानचित्र को हज़रत ईशामसीह के शरीर के आकार से प्रदर्शित किया गया है।
- इस्लाम धर्म के अनुसार हर मस्जिद का द्वार मक्का की और होना चाहिए।
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