niropcharik shiksha

निरौपचारिक शिक्षा (niropcharik shiksha) की संस्थाएं

शिक्षा की संस्थाएं मूलतः तीन प्रकार की होती हैं, जिनमें औपचारिक शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा एवं निरौपचारिक शिक्षा (niropcharik shiksha) की संस्थाएं आती हैं। संस्थाएं वे स्थान होती हैं जहां शिक्षा ग्रहण एवं प्रदान की जाती है। निरौपचारिक शिक्षा (niropcharik shiksha) की संस्थाएं वे स्थान हैं जहां से शिक्षा ग्रहण करने के लिए न तो पूर्ण रूप से औपचारिक शिक्षा के नियम लागू होते हैं, न ही अनौपचारिक शिक्षा के अर्थात् बालक पूर्ण रूप से न तो बंधित होता है और न ही मुक्त।

निरौपचारिक शिक्षा (niropcharik shiksha)

औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा के मध्य सामंजस्य स्थापित करने वाली शिक्षा को निरौपचारिक (niropcharik) शिक्षा कहते हैं।
इस प्रकार की शिक्षा में औपचारिक एवं अनौपचारिक, दोनों प्रकार की शिक्षाओं के गुण मिलते हैं। निरौपचारिक शिक्षा में औपचारिक शिक्षा की तरह नियम भी होते हैं तथा अनौपचारिक शिक्षा की तरह आजादी भी होती है पर इसके नियम तथा आजादी की सीमाएं होती हैं। इस प्रकार की संस्थाएं मूलतः उन लोगों के लिए होती हैं जो समय पर शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं तथा वे लोग जो व्यवसाय के साथ-साथ अपनी शिक्षा पूरी करना चाहते हैं। इस प्रकार की शिक्षा में शिक्षा प्रदान या ग्रहण करने के लिए संचार माध्यमों का उपयोग किया जाता है।

निरौपचारिक शिक्षा (niropcharik shiksha) की परिभाषाएं

निरौपचारिक शिक्षा (niropcharik shiksha) के बारे में कई शिक्षाशास्त्रीयों एवं विद्वानों ने परिभाषाएं दी हैं जो की इस प्रकार हैं-

अंतरराष्ट्रीय शिक्षा आयोग के अनुसार,

“निरौपचारिक शिक्षा आजीवन चलने की प्रक्रिया है और उन लोगों की शिक्षा पर बल देती है जिन्होंने पहले शिक्षा छोड़ दी थी।”

ब्रेमवर्क के अनुसार,

“निरौपचारिक शिक्षा औपचारिक शिक्षा से इस रूप में भिन्न है कि यह सीखने का उपयोग, तुरंत क्रिया, कार्य और अवसर के प्रयोग के द्वारा करने पर बल देती है।”

निम्कौफ के अनुसार,

“वह शिक्षा जो विधिपूर्वक संचार प्रक्रिया के माध्यम से प्रदान की जाती है और वयस्कों और स्कूल न जाने वाले नवयुवकों में कौशल जागृति का साधन हो, जिससे वे कृषि कार्य में वृद्धि, व्यापार में उन्नति, स्वास्थ्य में सुधार तथा आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक क्रियाओं में भागीदार बनने में अपनी भूमिका निभा सकें वह निरौपचारिक शिक्षा कहलाती है।”

चेस्टरफील्ड रडिल के अनुसार,

“निरौपचारिक शिक्षा एक अविमर्शित शिक्षा है, जिसको किसी अधिगम स्थिति में प्राप्तकर्ता द्वारा संदेशों के प्रत्यक्ष बोद्ध के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह प्रेषी की इच्छित शिक्षा से भिन्न है।”

वार्ड एवं डेल्म के अनुसार,

“निरौपचारिक शिक्षा एक नियोजित अनुदेशात्मक या शिक्षा संबंधी रूपरेखा है जिसमें लचीले वातावरण में मुक्त एवं गुप्त दोनों प्रकार की प्रक्रियाएं प्रयुक्त होती है जिससे नियमित नीति द्वारा निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।”

निरौपचारिक शिक्षा (niropcharik shiksha) को हम निम्न बिंदुओं से समझ सकते हैं-

१. इस प्रकार की शिक्षा मुक्त विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान की जाती है।

२. इस प्रकार की शिक्षा के स्पष्ट उद्देश्य होते हैं। 

३. इस प्रकार की शिक्षा की कोई पूर्व निर्धारित अवधी नहीं होती है। 

४. इस प्रकार की शिक्षा के लिए कोई निश्चित आयु नहीं  होती है। अतः (therefore) इस प्रकर की शिक्षा को किसी भी आयु-वर्ग का व्यक्ति कभी भी, किसी भी आयु में शुरू कर सकता है।

५. इस प्रकार की शिक्षा के परिणाम कभी अच्छे होते हैं तो कभी अच्छे नहीं होते क्योंकि इस प्रकार की शिक्षा में औपचारिक तथा अनौपचारिक, दोनों प्रकार की शिक्षा का समावेश होता है।

६. इस प्रकार की शिक्षा व्यक्ति अधिकतर स्व-अध्ययन द्वारा प्राप्त करता है।   

७. इस प्रकार की संस्थानों के नियम सरल होते हैं।

८. इस प्रकार की संस्था में शिक्षक तथा शिक्षार्थी को किसी प्रकार की बंदिश नहीं होती।

९. इस प्रकार के शिक्षण संस्थानों को बनाने के लिए इनके पीछे बड़े-बड़े संगठन होते हैं।

१०. इस प्रकार के संस्थानों की पाठ्यचर्या तथा पाठ्यक्रम पूर्व-निर्धारित होते हैं।

११. इस प्रकार की संस्थानों का पाठ्यक्रम शिक्षार्थी स्वयं निश्चित समय में संपन्न कर लेता है।

१२. इस प्रकार की शिक्षण संस्थानों की पूर्व-निर्धारित समय-सारिणी होती है किन्तु इस समय-सारिणी का पालन करना या ना करना शिक्षार्थी पर निर्भर करता है।

१३. इस प्रकार के शिक्षण संस्थानों में केवल प्रशिक्षित शिक्षक ही शिक्षण दे सकते हैं। प्रशिक्षित शिक्षक के स्थान पर शिक्षार्थी अन्य प्रकार से भी शिक्षा ग्रहण कर सकता है।  

१४. इस प्रकार की शिक्षा को चार-दीवार शिक्षा के बाहर की शिक्षा भी कहते हैं।

१५. इन शिक्षण संस्थाओं में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों को पता होता है कि क्या सीखना है और क्या सिखाना है। 

१६. इस प्रकार की शिक्षा में अनुशासन पर अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता नहीं होती है।

१७. इस प्रकार की शिक्षा में नियमित तौर पर परीक्षाएं नहीं कराई जाती हैं। 

१८. इस प्रकार की शिक्षा में विद्यार्थी को प्रमाण पत्र या डिग्री प्रदान की भी जाती है और नहीं भी की जाती है। 

१९. इस प्रकार की शिक्षा को ग्रहण करने में किसी भी प्रकार का कोई भी मानसिक दबाव नहीं होता है। 

उपसंहार

अंत में कुछ शिक्षा की संस्थाएं ऐसी भी हैं जिनमें औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के संस्थानों के गुण समाहित होते हैं, निरौपचारिक (niropcharik) शिक्षा की संस्थाएं ऐसी ही संस्थानों में से है जहां शिक्षार्थी विद्यालयों के अलावा अन्य शिक्षण संस्थाओं से शिक्षा ग्रहण करता है तथा जहां उसे नियमों के आधीन होकर कोई कार्य नहीं करना पड़ता।

अक्सर देखा जाता है कि जो बालक विद्यालय से बहुत दूर रहता है या कोई समय से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाता है अथवा नौकरी करने लग जाता है, तो निरौपचारिक शिक्षण संस्थाओं से शिक्षा प्राप्त करता है।

अतः (therefore) हम कह सकते हैं कि निरौपचारिक शिक्षा (niropcharik shiksha) उन सब के लिए लाभप्रद है जो लोग समय से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते या अपने व्यवसाय के चलते शिक्षण संस्थाओं में निरंतर शिक्षा ग्रहण करने नहीं आ पाते।

यह भी जानें-

शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा (meaning and definition of education)

रुचि (Interest)

औपचारिक शिक्षा,

राष्ट्रीय ज्ञान आयोग

कोठारी आयोग

माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर आयोग)

2 thoughts on “निरौपचारिक शिक्षा (niropcharik shiksha) की संस्थाएं”

Comments are closed.