शिक्षा की संस्थाओं को उनके गुणों के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है, औपचारिक (aupcharik shiksha), निरौपचारिक एवं अनौपचारिक । इस प्रकार का विभाजन शिक्षा ग्रहण करने का स्थान तथा उस शिक्षा को प्राप्त करने के लिए बनाए गए नियमों के आधार पर होता है। औपचारिक शिक्षा की संस्थाएं वे स्थान हैं जहां शिक्षार्थी को नियमित तौर पर शिक्षा ग्रहण करने जाना पड़ता है तथा उन संस्थाओं के नियमों का पालन करना पड़ता है।
इस प्रकार की संस्थाओं में प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा शिक्षार्थियों को शिक्षा प्रदान की जाती है।
औपचारिक शिक्षा (aupcharik shiksha)
औपचारिक शब्द के अर्थ को अगर हम समझें तो सामान्य शब्दों में इसका अर्थ निकलता है- नियमों के तहत किसी कार्य को संपन्न करना। अतः औपचारिक शिक्षा (aupcharik shiksha) वह शिक्षा है जिसे प्राप्त करने के लिए हमें कई नियमों का पालन करना पड़ता है। औपचारिक शिक्षा की प्राप्ति के लिए हम शिक्षा के जिन संस्थानों में प्रवेश लेते हैं वहां हमें शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई नियमों का पालन करना पड़ता है।
इस प्रकार की शिक्षा शिक्षार्थी विद्यालयों, महाविद्यालयों या विश्वविद्यालयों से प्राप्त करते हैं।
किसी भी प्रकार की शिक्षा जो की विद्यार्थी द्वारा प्राप्त की जाए तथा उस शिक्षा के निश्चित उद्देश्य हों, वह निर्देशात्मक हो, उसमें पर्यवेक्षण ( देखरेख ) आदि की सुविधा हो, तो इस प्रकार की शिक्षा को औपचारिक शिक्षा (aupcharik shiksha) कहते हैं।
औपचारिक शिक्षा (aupcharik shiksha) को हम निम्न बिंदुओं से समझ सकते हैं –
१. इस प्रकार की शिक्षा विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि संस्थानों में संपन्न होती है।
२. इस प्रकार की शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्य पहले से ही निर्धारित किये हुए होते हैं।
३. इस प्रकार की शिक्षा एक पूर्व निर्धारित अवधी तक सीमित होती है।
४. इस प्रकार की शिक्षा के लिए निश्चित आयु वर्ग निर्धारित होते हैं। इस प्रकार की शिक्षा को शिक्षार्थी ५ वर्ष की आयु से प्राप्त करना शुरू करता है।
५. इस प्रकार की शिक्षा के पूर्व निर्धारित लक्ष्य होते हैं। अतः (therefore) शिक्षक शिक्षार्थी को दी जाने वाली शिक्षा के लिए पहले से तैयार होते हैं जिस कारण शिक्षा के परिणाम अच्छे होते हैं।
६. इस प्रकार की शिक्षा (aupcharik shiksha)शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों की देख-रेख में होती है।
७. इस प्रकार की संस्थानों के कठोर नियम होते हैं तथा ये नियम सभी शिक्षार्थियों के लिए समान होते हैं।
८. इस प्रकार की संस्था में शिक्षक तथा शिक्षार्थी को किसी प्रकार की आजादी नहीं होती तथा सब नियम के आधार पर होता है।
९. इस प्रकार के शिक्षण संस्थानों को बनाने के लिए इनके पीछे बड़े-बड़े संगठन होते हैं, जो इन संस्थानों के नियम तथा इसमें प्रवेश से लेकर छोड़ने तक की संरचना तैयार करते हैं।
१०. इस प्रकार की संस्थानों की पाठ्यचर्या तथा पाठ्यक्रम संगठनों में विषय-विशेषज्ञों के द्वारा बनाए जाते हैं। अतः पाठ्यक्रम पूर्व-निर्धारित होते हैं।
११. इस प्रकार की संस्थानों का पाठ्यक्रम औपचारिक रूप से समय के अंतर्गत संपन्न करा दिया जाता है।
१२. इस प्रकार की शिक्षण संस्थानों की पूर्व निर्धारित समय-सारिणी होती है जिसके अनुसार शिक्षण कार्य संपन्न होता है।
१३. इस प्रकार की शिक्षण संस्थानों में केवल प्रशिक्षित शिक्षक ही शिक्षण दे सकते हैं।
१४. इस प्रकार की शिक्षा को चार-दीवार शिक्षा भी कहते हैं।
१५. इस प्रकार की शिक्षा (aupcharik shiksha) में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों को पता होता है कि क्या सीखना है और क्या सिखाना है।
१६. इस प्रकार की शिक्षा में अनुशासन पर अधिक ध्यान रखा जाता है अतः (So) अनुशासन सख्त होता है।
१७. इस प्रकार की शिक्षा (aupcharik shiksha) में नियमित तौर पर परीक्षाएं कराई जाती हैं।
१८. इस प्रकार की शिक्षा में परीक्षा के परिणाम घोषित किए जाते हैं तथा अंत में विद्यार्थी को प्रमाण पत्र या डिग्री प्रदान की जाती है।
उपसंहार
अधोलिखित विवरण से हमें ये पता चलता है कि औपचारिक शिक्षा के संस्थानों को हम चार-दीवार संस्था भी कहते हैं अर्थात् वह संस्थाएं जो नियमों के तहत कार्य करती है तथा शिक्षार्थी को शिक्षा ग्रहण करने के लिए इन शिक्षा के संस्थानों में जाना होता है, जैसे- विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि औपचारिक शिक्षा की संस्थाएं हैं। अभिभावक ज्यादातर अपने बच्चों को औपचारिक शिक्षा (aupcharik shiksha) की संस्थाओं में भेजना पसंद करते हैं। शिक्षा की संस्थानों में सर्वोपरि (In the first place) औपचारिक शिक्षा की संस्थानों को माना जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि औपचारिक शिक्षा का अपना एक अलग स्थान है जहां अनुशासन, नियमितता, एवं नियमों के आधीन होकर शिक्षा ग्रहण की जाती है।
यह भी जानें-
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