सामान्य अर्थ में देखा जाए तो संवेदना (संवेदना का अर्थ) का शाब्दिक अर्थ होता है सम + वेदना जिसमें सम का अर्थ समान तथा वेदना का अर्थ दुख होता है। अतः संवेदना का शाब्दिक अर्थ हुआ समान दुख।
मनोविज्ञान के क्षेत्र में संवेदना शब्द का प्रयोग मनुष्य की ज्ञानेंद्रियों के अनुभवों के लिए किया जाता है। मनुष्य की प्रारंभिक अनुभूति को संवेदना कहते हैं। मनुष्य प्रारंभ में अपनी ज्ञानेंद्रियों द्वारा किसी वस्तु या उद्दीपक के किसी भी गुण की अनुभूति करता है, उस अनुभूति को संवेदना कहते हैं।
(संवेदना का अर्थ)
परिचय (संवेदना का अर्थ)
ज्ञानेंद्रियों के द्वारा वातावरण में उपस्थित वस्तु या उद्दीपक को जानना संवेदना कहलाता है। जीवन की प्रारंभिक अनुक्रिया संवेदना होती है। यह एक मानसिक क्रिया है। इसे ज्ञान की प्रथम सीढ़ी भी कहा जाता है। संवेदना के द्वारा केवल एहसास या आभास होता है। संवेदना में अर्थ एवं अनुभव नहीं होता है। इस प्रकार की अनुभूति मनुष्य के शरीर में उपस्थित नाड़ी तंत्र के द्वारा होती है। मनुष्य के शरीर में दो प्रकार के नाड़ी तंत्र होते हैं- (संवेदना का अर्थ)
ज्ञान वाहक नाड़ी तंत्र
कार्य वाहक नाड़ी तंत्र
जब मनुष्य किसी वस्तु या उद्दीपक के संपर्क में आता है तो मनुष्य की ज्ञानेंद्रियां उसके गुण के अनुसार उस वस्तु या उद्दीपक के प्रति उत्तेजित होती है, इस प्रकार की उत्तेजना विक्षोभ को उत्पन्न करती है। इस विक्षोभ को शरीर विज्ञान की भाषा में नाड़ी आवेश कहते हैं। यह आवेश ज्ञान वाहक नाड़ियों की सहायता से मस्तिष्क में स्थित ज्ञान केंद्र में पहुंचता है। ज्ञान केंद्र में उस वस्तु के गुण की अनुभूति होती है जिसे संवेदना कहते हैं।
उदाहरण के लिए यदि आपके शरीर में किसी स्थान पर कोई स्पर्श करें तो आपके शरीर में उस जगह पर उत्तेजना होती है इस उत्तेजना से शरीर के उस भाग में एक विक्षोभ उत्पन्न होता है। यह बिच्छू ज्ञान वाहक नालियों के द्वारा मस्तिष्क में स्थित ज्ञान केंद्र में पहुंचता है जिससे मस्तिष्क में उस स्पर्श की अनुभूति होती है जिसे मनोविज्ञान की भाषा में संवेदना कहते हैं।
संवेदना की परिभाषाएं– (संवेदना का अर्थ)
क्रूज के अनुसार,
“उद्दीपक के प्रति प्राणी की प्रथम अनुक्रिया ही संवेदना है।”
डगलस और हालैंड के अनुसार,
“संवेदना शब्द का प्रयोग चेतन अनुभवों में सरलतम् अनुभवों के लिए किया जाता है।”
संवेदना में अर्थहीन एवं अनुभवहीन ज्ञान प्राप्त होता है। संवेदन के लिए किसी वस्तु या उद्दीपक का होना आवश्यक है।
जेम्स के द्वारा कथन – “ज्ञान के मार्ग में प्रथम वस्तु है”
संवेदना के प्रकार
संवेदना को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है –
- बाह्य संवेदना
- आंतरिक संवेदना के प्रकार- गोंड
बाह्य संवेदना के प्रकार- मुख्य
बाह्य संवेदना मनुष्य की ज्ञानेंद्रियों पर आधारित होती है। बाह्य संवेदनाएं निम्न पांच प्रकार की होती हैं –
1. दृष्टि संवेदनाएं
आंखो द्वारा प्राप्त होने वाली संवेदना को दृष्टि संवेदना कहते हैं।
2. ध्वनि संवेदनाएं
कानों द्वारा प्राप्त होने वाली संवेदनाओं को ध्वनि संवेदना कहते हैं
3. गंध संवेदनाएं
नाक द्वारा प्राप्त होने वाली संवेदनाओं को गंद संवेदना कहते हैं
4. स्पर्श संवेदनाएं
त्वचा से प्राप्त होने वाली संवेदनाओं को स्पर्श संवेदना कहते हैं
5. स्वाद संवेदनाएं
जीह्वा द्वारा प्राप्त होने वाली संवेदना हो को स्वाद संवेदना कहते हैं।
आंतरिक संवेदना के प्रकार- गोंड
आंतरिक संवेदनाएं डगलस और हाॅलैंड के द्वारा बताई गई हैं। आंतरिक संवेदनाएं निम्न दो प्रकार की हैं-
1. मांसपेशिय संवेदनाएं
मांस पेशियों में होने वाली संवेदना हो को मांस पेशिय संवेदनाएं कहते हैं
2. शारीरिक संवेदनाएं
शरीर के अंदर होने वाली संवेदनाओं को शारीरिक संवेदनाएं कहते हैं।
संवेदना के स्तर
संवेदना के मुख्य तीन स्तर होते हैं
संवेदी सीमांत
ज्ञानेंद्रियों की एक सीमा होती है अर्थात यदि कोई आवाज बहुत दूर से आ रही हो या बहुत धीमी हो तो उस आवाज को हम नहीं सुन पाते। अतः जो आवाज सीमा के अंदर हो उसे हम संवेदी सीमांत कहते है। अर्थात हमारी संवेदनाओं की कुछ निर्धारित सीमा होती है। इन संवेदना ओं को संवेदी सीमांत कहते हैं।
निरपेक्ष सीमांत
न्यूनतम मूल्य होना आवश्यक है। किसी वस्तु या उद्दीपक का न्यूनतम मूल्य होना जिसके द्वारा हम उसका आभास कर सकें, इस प्रकार के सीमांत को निरपेक्ष सीमांत कहते हैं।
विभेदक सीमांत
दो वस्तुओं या उद्दीपकों में अंतर होना आवश्यक है। उद्दीपकों के अंतर को विभेदक सीमांत कहते हैं।
संवेदना की उपयोगिता
संवेदना की उपयोगिता निम्न है –
- संवेदना के द्वारा मानसिक विकास होता है
- संवेदना प्रत्यक्षीकरण के लिए सहायक सिद्ध होती है।
- संवेदना संप्रत्यय में सहायक सिद्ध होती है।
- किसी वस्तु या उद्दीपक का आभासी ज्ञान कराना।
- अवधान के विकास के लिए उपयोगी।
संवेदना के गुण
संवेदना के गुण निम्न हैं –
- प्रत्येक संवेदना अद्वितीय होते हैं
- संवेदना विशिष्ट होती है
- एक संवेदना दूसरी संवेदना से स्पष्ट होती है
- एक निर्धारित विस्तार होता है
- प्रत्येक संवेदना का स्थानीय लक्षण होता है
- संवेदना का प्रसार होता है
- संवेदना की एक अवधि होती है।
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