शिक्षा के उद्देश्य- समकालीन शब्द का अर्थ होता है वर्तमान समय या आधुनिक समय। वर्तमान समय या आधुनिक समय में हमारा समाज व हमारी सरकार व्यक्ति के शिक्षित होने पर अधिक बल दे रही है। उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिए ही हम कोई कार्य करते हैं। भारतीय शिक्षा के भी कुछ मुख्य लक्ष्य हैं जिन्हे प्राप्त करने के लिए हमे विभिन्न शिक्षा के उद्देश्य/उद्देश्यों की पूर्ति करनी पड़ती है।
वर्तमान भारतीय समाज में शिक्षा के मुख्य लक्ष्य निम्न हैं –
1. जनतंत्र (लोकतांत्रिक विकास)
2. समाजवाद (सामाजिक विकास)
3. धर्मनिरपेक्षता
4. राष्ट्रीय मूल्य
इन चार मुख्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा के कई उद्देश्यों को पूर्ण करना होता है।
देश काल परिस्थिति के साथ-साथ परिवर्तन आना स्वाभाविक है। अतः कहा गया है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। शिक्षा के क्षेत्र में भी प्राचीन समय से अब तक कई परिवर्तन आए हैं। अगर हम वैदिक काल को देखें तो वैदिक काल में शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य था, मोक्ष की प्राप्ति। वैदिक काल में व्यक्ति शिक्षा की प्राप्ति इसलिए करता था ताकि उसको मोक्ष की प्राप्ति हो सके। उस मोक्ष की प्राप्ति के लिए वह कई उद्देश्यों को पूरा करता था। जैसे-जैसे समय बड़ा, समय के बढ़ने के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में कई परिवर्तन आए। जिस प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन आए उसी प्रकार शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्यों में भी परिवर्तन आए।
शिक्षा के उद्देश्य/उद्देश्यों की अगर हम बात करें तो शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्न है-
मानसिक विकास
शारीरिक विकास
सांस्कृतिक विकास
सामाजिक विकास
धार्मिक सहिष्णुता का विकास
व्यवसायिक विकास
लोकतंत्र की शिक्षा
जनसंख्या शिक्षा
आधुनिकीकरण की शिक्षा
राष्ट्रीय एकता की शिक्षा
राष्ट्रीय मूल्यों की शिक्षा
नैतिक एवं चारित्रिक विकास
नेतृत्व की शिक्षा आदि।
मानसिक विकास
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे का मानसिक विकास करना है। मानसिक विकास से बच्चे को अच्छे बुरे में अंतर करना आ जाता है तथा मानसिक विकास के कारण वह अन्य चीजों में फर्क बता सकता है। किसी भी वस्तु को या किसी भी प्रकार के विचार के बारे में सोचने-समझने के लिए बच्चे का मानसिक विकास होना आवश्यक है इसलिए शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे का मानसिक विकास करना है।
शारीरिक विकास
कहते हैं अच्छे तन पर अच्छा मस्तिष्क निवास करता है। अतः बच्चे के मस्तिष्क के अच्छे विकास के लिए बच्चे का शारीरिक विकास भी आवश्यक है। बच्चे के शारीरिक विकास के लिए बच्चे को सुबह समय से उठना, व्यायाम करना व अच्छा भोजन करना, इस प्रकार की शिक्षा दी जाती है जिससे उसके शरीर का विकास हो। अतः शारीरिक विकास शिक्षा प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
सांस्कृतिक विकास
भारत एक ऐसा देश है जो अपनी संस्कृति के लिए पुरे विश्व में जाना जाता है। भारत में भिन्न-भिन्न जाति, जनजाति, धर्म के लोग रहते हैं। सभी की अलग-अलग संस्कृति है तथा उस संस्कृति को आगे ले जाने के लिए बच्चे को संस्कृति का ज्ञान होना आवश्यक है। संस्कृति का तात्पर्य है पहनावा, खान पान, रहन सहन, बोली, नृत्य, संगीत आदि। संस्कृति के संरक्षण के लिए संस्कृति के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है। अतः सांस्कृतिक विकास शिक्षा का उद्देश्य है जिससे बच्चे का सांस्कृतिक विकास हो सके ताकि संस्कृति का संरक्षण हो सके।
सामाजिक विकास
हम भिन्न-भिन्न समुदायों के बीच में रहते हैं। भिन्न-भिन्न समुदाय मिलकर एक समाज का निर्माण करते हैं। हमारे समाज में अलग-अलग धर्म के तथा अलग-अलग प्रकार के लोग रहते हैं। अतः बच्चे को सामाजिक होना आवश्यक है। बच्चों को सामाजिक बनाने के लिए उसको समाज के बारे में शिक्षा दी जाती है। हम एक समाज के अंतर्गत रहते हैं अतः हमें अपने समाज से भी काफी कुछ सीखने को मिलता है। समाज में भिन्न-भिन्न जाति, धर्म के लोगों के साथ हम प्रेम पूर्वक रहते हैं। शिक्षा के द्वारा हम समाज के लोगों के साथ प्रेमपूर्वक रहना सीखते हैं अतः बच्चे का सामाजिक विकास आवश्यक है।
धार्मिक सहिष्णुता का विकास
हमारा देश भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। भारत में कई धर्मों के लोग एक साथ प्रेम पूर्वक रहते हैं। शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है सभी धर्मों के बीच प्रेम भावना बनाए रखना। शिक्षा के संस्थानों में विद्यार्थी को प्रवेश धर्म के आधार पर नहीं दिया जाता बल्कि उसकी योग्यता के आधार पर दिया जाता है। शिक्षा के संस्थानों में भिन्न-भिन्न धर्म के बच्चे एक साथ विद्या ग्रहण करते हैं तथा हर धर्म तथा उनके त्योहारों का सम्मान करना सीखते हैं। शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य यह भी है कि बच्चों को विभिन्न धर्म की जानकारी दी जाए तथा हर धर्म के प्रति सम्मान की भावना जाग्रत कराई जाए।
व्यवसायिक विकास
शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है कि बच्चा शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात एक अच्छा व्यवसाय पा सके तथा अपना जीवन यापन अच्छे से कर सके। शिक्षा के द्वारा बच्चे अलग-अलग विषय का ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा भविष्य में उस ज्ञान का प्रयोग अपने व्यवसाय में या व्यवसाय को पाने के लिए करते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में कई ऐसे संस्थान हैं जो व्यवसाय पाने के लिए बच्चों का मार्गदर्शन करते हैं। अतः शिक्षा व्यवसायिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
लोकतंत्र की शिक्षा
लोकतंत्र को हम जनतंत्र या प्रजातंत्र भी कहते हैं। हमारे देश में लोकतांत्रिक सरकार है अतः हमारे देश के हर नागरिक को लोकतंत्र का अर्थ ज्ञात होना आवश्यक है। लोकतंत्र का अर्थ हुआ नागरिकों की शक्ति अर्थात वह सरकार जो देश के नागरिकों के द्वारा बनाई गई हो। लोकतंत्र का अर्थ यह भी है की सभी को समान अधिकार प्राप्त हो। अतः विद्यालय में छात्रों को लोकतंत्र की शिक्षा देना आवश्यक है तथा विद्यालयों का वातावरण अर्थात शिक्षा का वातावरण लोकतांत्रिक होना चाहिए। लोकतान्त्रिक वातावरण से तात्पर्य यह है कि विद्यालयों में सभी छात्रों के साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए। शिक्षा के उद्देश्य में लोकतंत्र की शिक्षा का होना भी आवश्यक है।
जनसंख्या शिक्षा
जब-जब जनसंख्या की बात की जाती है, चीन और भारत का नाम सबसे ऊपर आता है। हमारा देश भारत विश्व में सर्वाधिक जनसँख्या वाले देशों में से दूसरे स्थान पर है।भारत की वर्तमान जनसँख्या 1,325,349,639 है। बढ़ती जनसँख्या के चलते देश व देशवाशियों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। अतः शिक्षा के उद्देश्य में जनसँख्या शिक्षा को भी शामिल गया है।
आधुनिकीकरण की शिक्षा
आधुनिकीकरण को अंग्रेजी में Modernization कहते हैं। जिस प्रकार शिक्षा विभिन्न साधनों के द्वारा समाज में परिवर्तन लाती है उसी प्रकार जब समाज में परिवर्तन होता है तो वह आधुनिकीकरण की ओर अग्रसर होती है। जैसे-जैसे हमारा समाज आधुनिकीकरण की और बड़ा, आधुनिकीकरण का असर शिक्षा के क्षेत्र में भी दिखने लगा। शिक्षा प्रदान करने के लिए नई-नई तकनीकियों का प्रयोग किया जाने लगा।
अब हमारी शिक्षा में तकनिकी शिक्षा भी जोड़ दी गयी है। आधुनिकीकरण की शिक्षा का ज्ञान होना अति आवश्यक है। जिस प्रकार समय आगे बढ़ रहा है उसी प्रकार आधुनिकीकरण की शिक्षा भी आवश्यक है क्युकी आधुनिकीकरण के मार्ग में चल कर बच्चा गलत मार्ग का भी अनुसरण कर सकता है, अतः आधुनिकीकरण की शिक्षा प्रदान करना भी शिक्षा का एक मुख्य उद्देशय है। अतः शिक्षा के उद्देश्य में आधुनिकीकरण की शिक्षा को भी शामिल करना आवश्यक है।
राष्ट्रीय एकता की शिक्षा
हमारा देश विभिन्नताओं का देश है। हमारे देश में कई प्रकार के जाती धर्म के लोग रहते हैं। अमीर, गरीब, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईशाई, बौद्ध, जैन आदि विभिन्न धर्म और जाती के लोग एक ही देश में अपने अलग-अलग रीती-रिवाज़ों के साथ रहते हैं। सब में राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना जगाने के लिए राष्ट्रिय एकता की शिक्षा देना आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता की शिक्षा से देश में रहने वाले विभिन्न जाती एवं धर्म के लोगों के मध्य एकता की भावना जाग्रत होती है तथा सब मिल-जुल कर रहते हैं। अतः राष्ट्रीय एकता की शिक्षा भी शिक्षा के उद्देश्य का एक अंग है।
राष्ट्रीय मूल्यों की शिक्षा
राष्ट्रीय मूल्यों की शिक्षा में सिखाया जाता है कि हमें राष्ट्र में सब के साथ किस प्रकार से रहना चाहिए तथा किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। स्वंत्रता, भाई-चारा, समानता, धर्म-निरपेक्षता, समाजवाद व न्याय आदि हमारे देश के राष्ट्रीय मूल्य हैं जिनकी शिक्षा एवं जानकारी होना आवश्यक है। अतः राष्ट्रीय मूल्यों की शिक्षा प्रदान करना भी शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है।
नैतिक एवं चारित्रिक विकास
नैतिक विकास के अंतर्गत ये बताया जाता है कि किसी समाज के मध्य किस प्रकार का व्यवहार सही है व किस प्रकार का व्यवहार गलत है, अर्थात क्या सही है व क्या गलत है। नैतिक विकास के द्वारा हम सही व गलत में अंतर करने में सक्षम हो जाते हैं। नैतिक विकास के द्वारा मनुष्य का चारित्रिक विकास होता है। अतः शिक्षा के उद्देश्य में नैतिक एवं चारित्रिक विकास भी सम्मिलित है।
नेतृत्व की शिक्षा
नेतृत्व एक ऐसा विषय है जिसके अभाव में किसी बड़े कार्य का संपन्न होना मुश्किल होता है। नेतृत्व की शिक्षा के अंतर्गत बालक को नेतृत्व के गुणों से अवगत कराया जाता है। नेतृत्व का तात्पर्य अनुसरण करना भी होता है, अर्थात जो नेतृत्व करता है सब उसका अनुसरण करते हैं। अतः शिक्षा के उद्देश्य में नेतृत्व की शिक्षा प्रदान करना भी होना चाहिए ताकि नेतृत्व करने वाले को तथा अनुसरण करने वालो को पता हो कि किस प्रकार से नेतृत्व करना है या किस का अनुसरण करना है।
उपसंहार
जब से मनुष्य ने शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा तब से उसे शिक्षा के उद्देश्य भी निर्धारित करने पड़े। बिना लक्ष्य या उद्देश्य के शिक्षा का कोई अर्थ नहीं था। शिक्षा के उद्देश्य/उद्देश्यों का निर्माण वहां के समाज के आधार पर किया गया। जैसे-जैसे समय बदला शिक्षा के क्षेत्र में तथा उसके उद्देश्यों में भी परिवर्तन आते रहे। शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जिसके द्वारा मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है।
शिक्षा के द्वारा बच्चे के अच्छे चरित्र का निर्माण किया जा सकता है। शिक्षा की सहायता से बच्चों के सर्वांगीड़ विकास के लिए कई उद्देश्य बनाये गए जो समय के साथ-साथ बदलते रहे। बच्चे के सर्वांगीड़ विकास के लिए उसके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि के विकास की आवश्यकता पड़ती है जिस से हमारे देश का भी विकास होता है। अतः बालक एवं देश के विकास तथा समय की मांग के अनुसार शिक्षा के लक्ष्य एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई उद्देश्यों की आवश्यकता पड़ती है।
यह भी जानें-
शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा (meaning and definition of education)
आचार्य नरेंद्र देव समिति (1952-1953)
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