पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते हैं तथा विद्वानों द्वारा वायुमंडल के विभिन्न आधारों पर विभाजन को वायुमंडल की संरचना कहते हैं। रासायनिक संगठन के आधार पर मार्सेल निकोलेट ने वायुमंडल (वायुमंडल की संरचना) को दो भागों में विभाजित किया था- सम मंडल और विषय मंडल।
दूसरी ओर सामान्य विचारधारा के अनुसार पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायुमंडल को 5 परतों में विभाजित किया गया है। इन 5 परतों के विभाजन का आधार तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण व दाब है।
वायुमंडल की संरचना का रासायनिक संगठन
रासायनिक संघटन की दृष्टि से वायुमंडल (वायुमंडल की संरचना) को मार्सेल निकोलेट ने 2 परतों में बांटा है।
सम मंडल
धरातल से लगभग 90 किलोमीटर की ऊंचाई तक वायुमंडल में गैसों का मिश्रण लगभग एक समान रहता है। अतः गैसों के मिश्रण की समानता के कारण इसे सम मंडल कहते हैं।
विषम मंडल
धरातल से 90 किलोमीटर की ऊंचाई के बाद नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हिलियम व हाइड्रोजन की अलग-अलग आण्विक परतें मिलती हैं। इन विभिन्न रासायनिक तत्वों को इन की प्रधानता के आधार पर निम्न चार स्तरों में विभक्त किया जाता है।
नाइट्रोजन स्तर
ऑक्सीजन स्तर
हीलियम स्तर
हाइड्रोजन स्तर
वायुमंडल की संरचना- ताप व दाब के आधार पर
वायुमंडल की संरचना को ताप दाब के आधार पर निम्न पांच परतों में विभाजित किया गया है।
क्षोभमण्डल
वायुमंडल की सबसे निचली परत को क्षोभमण्डल कहते हैं। विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर क्षोभमण्डल की परत की ऊंचाई में कमी आती रहती है। विषुवत रेखा पर इसकी ऊंचाई 18 किलोमीटर होती है तथा ध्रुवों पर इसकी ऊंचाई केवल 8 किलोमीटर है। इस परत को वायुमंडल की सबसे महत्वपूर्ण परत माना जाता है। इस मंडल में प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर तापमान में 1 डिग्री सेंटीग्रेड की कमी आती है। इस प्रकार ऊंचाई के साथ तापमान में गिरावट को सामान्य ताप पतन दर कहा जाता है।
इसी मंडल में मौसम संबंधी सभी गतिविधियां संपन्नन होती हैं जोकि पृथ्वी में जीव-जगत की उत्पत्ति एवं विकास के लिए सहायक सिद्ध होती हैं। विभिन्न प्रकार के मौसमी परिवर्तन के कारण इस मंडल को परिवर्तन मंडल भी कहते हैं। विभिन्न प्रकार के मौसमी घटनाओं के कारण इस मंडल को संवाहनीय मंडल या विक्षोभ मंडल भी कहते हैं। क्षोभमंडल को अधोमंडल नाम से भी जाना जाता है।
वायुमंडलीय परतों में क्षोभ मंडल तथा समताप मंडल के मध्य क्षोभ सीमा पाई जाती है जो लगभग 2 किलोमीटर मोटी होती है। इसके अंतर्गत क्षोभ मंडल और समताप मंडल, दोनों की विशेषताएं पाई जाती हैं। क्षोभ सीमा के निकट चलने वाली अत्यधिक तीर्व गति की पवनों को जेट स्ट्रीम कहा जाता है।
समतापमण्डल
क्षोभ सीमा के ऊपर समताप मंडल पाया जाता है जिसकी ऊंचाई लगभग 50 किलोमीटर तक होती है। इस मंडल में प्रारंभ में तापमान स्थिर रहता है किंतु 20 किलोमीटर के बाद जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती है तापमान में वृद्धि होने लगती है। इस प्रकार से तापमान की वृद्धि का कारण समताप मंडल के ऊपरी भाग में ओजोन गैसों की उपस्थिति है। ओजोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर लेता है जिस कारण इस का तापमान बढ़ने लगता है। समताप मंडल में किसी भी प्रकार की मौसमी घटनाएं नहीं घटती तथा वायु क्षैतिज चलती है जिस कारण इस परत में वायुयान आसानी से उड़ाए जाते हैं।
समताप मंडल के निचली परत पर तापमान स्थिर रहने के कारण इस मंडल को समताप मंडल कहते हैं। समताप मंडल की निचली परत पर कभी-कभी सिरस बादल भी पाए जाते हैं। इस प्रकार के मेघों को मुक्ताभ मेघ (मदर ऑफ पर्ल क्लाउड्स या नैक्रियस क्लाइड) भी कहा जाता है। समताप मंडल की खोज टोजरेस डी बोर्ट ने की थी।
समताप मंडल और मध्य मंडल के मध्य की सीमा को समताप सीमा कहते हैं।
मध्यमण्डल
समताप मंडल के ऊपर की परत को मध्य मंडल कहते हैं। इस मंडल की ऊंचाई धरातल से 50 से 80 किलोमीटर तक है। मध्य मंडल में पुनः तापमान में गिरावट आने लगती है। इस मंडल में तापमान गिरकर -100 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है जोकि वायुमंडल का न्यूनतम तापमान है।
मध्य मंडल और आयन मंडल के मध्य की सीमा को मध्य सीमा कहते हैं।
आयनमण्डल
मध्य मंडल की ऊपर की सीमा को आयन मंडल कहते हैं। इस मंडल की ऊंचाई 80 से 400 किलोमीटर तक है। इस मंडल में ऊंचाई के साथ-साथ तापमान में वृद्धि होती है तथा वायु में विद्युत आवेशित कणों की अधिकता होती है। आयन मंडल विद्युत चुंबकीय तरंगों को परावर्तित कर देता है। वायुमंडल की इसी परत से विभिन्न रेडियो तरंगे परावर्तित होकर पृथ्वी पर लौट आती है जिससे रेडियो प्रसारण संभव हो पाता है। इस मंडल को ऊंचाई के साथ-साथ निम्न परतों में विभाजित किया गया है।
डी परत– इस परत से निम्न आवर्ती की रेडियो तरंगे परावर्तित होती हैं।
इ परत– इस परत को केनेली हेवीसाइड परत भी कहा जाता है। इस परत से मध्यम व उच्च आवृत्ति की रेडियो तरंगें परावर्तित होती हैं। आयन मंडल की इसी परत में औरोरा बोरेलिस (उत्तरी ध्रुवी प्रकाश) तथा औरोरा ऑस्ट्रेलिस (दक्षिणी ध्रुवी प्रकाश) जैसी घटनाएं घटित होती हैं।
एफ परत– इस परत को एपलेटन परत भी कहा जाता है। इस परत से मध्यम व उच्च आवृत्ति की रेडियो तरंगें परावर्तित होती हैं।
जी परत- इस परत से निम्न, मध्यम व उच्च, सभी प्रकार की आवृत्ति की रेडियो तरंगे परावर्तित होती हैं।
बहिर्मण्डल
आयन मंडल के ऊपर वायुमंडल की अंतिम परत आती है जिसे बाह्मंयडल या बहिर्मण्डल कहते हैं। इस परत को आयतन मण्डल भी कहा जाता है। इस परत में हाइड्रोजन तथा हीलियम की मात्रा बढ़ जाती है।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य– वायुमंडल की संरचना
- वायुमंडल की संरचना का आधार तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण तथा वायुदाब है।
- वायुमंडल की संरचना का नीचे से ऊपर की ओर क्रम- क्षोभ मंडल, समताप मंडल, मध्य मंडल , आयन मंडल, बाह्य मंडल।
- विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर क्षोभमंडल की परत की ऊंचाई में कमी आती है।
- ऊंचाई के साथ तापमान में गिरावट को सामान्य ताप पतन दर कहते हैं।
- क्षोभ मंडल में प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर तापमान में 1 डिग्री सेंटीग्रेड की कमी आती है।
- क्षोभ मंडल में मौसम संबंधी सभी गतिविधियां संपन्न होती हैं तथा मौसम में परिवर्तन आते रहता है अतः इसे परिवर्तन मंडल भी कहा जाता है।
- क्षोभ मंडल तथा समताप मंडल के मध्य की सीमा को क्षोभ सीमा कहते हैं।
- समताप मंडल के शुरुआती 20 किलोमीटर तक तापमान में कोई परिवर्तन नहीं आता अर्थात तापमान स्थिर रहता है अतः इसके समान तापमान के कारण इसे समताप मंडल कहा जाता है।
- ओजोन मंडल समताप मंडल का भाग है जो कि समताप मंडल के ऊपरी भाग में पाया जाता है।
- फ्रांस के भौतिकविद फैबरी चार्ल्स व हेनरी बुसोन ने 1913 में ओजोन परत की खोज की।
- ओजोन मंडल सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर पृथ्वी पर जाने से रोकता है।
- समताप मंडल में वायुयान उड़ाए जाते हैं।
- इस मंडल की निचली परत में कभी-कभी मुक्ताभ मेघ पाए जाते हैं।
- समताप मंडल की खोज टोजरेस डी बोर्ट ने की थी।
- मध्य मंडल में वायुमंडल का सबसे न्यूनतम तापमान पाया जाता है जो कि -100 डिग्री सेंटीग्रेड है।
- आयन मंडल में विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं जिससे विभिन्न रेडियो तरंगे परावर्तित होकर पृथ्वी पर लौट जाती है जिससे के कारण रेडियो प्रसारण संभव होता है।
- आयन मंडल को ऊंचाई के साथ साथ निम्न परतों में विभाजित किया गया है। डी-परत, ई-परत, एफ-परत, जी-परत।
- इ-परत को केनेली हेवीसाइड परत भी कहा जाता है।
- आयन मंडल की इ-परत में औरोरा बोरेलिस (उत्तरी ध्रुवी प्रकाश) तथा औरोरा ऑस्ट्रेलिस (दक्षिणी ध्रुवी प्रकाश) जैसी घटनाएं घटित होती हैं।
- एफ-परत को एपलेटन परत भी कहा जाता है।
- बाह्यमंडल को आयतन मंडल भी कहते हैं।
- रासायनिक संघटन की दृष्टि से मार्सेल निकोलेट ने वायुमंडल (वायुमंडल की संरचना) को 2 परतों में बांटा- सम मंडल (90 किलोमीटर की ऊंचाई तक), विषम मंडल (90 किलोमीटर से ऊपर)।
यह भी जानें-
भू-आकृति विज्ञान (जियोमोर्फोलॉजी)