पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायु के भंडार को वायुमंडल कहते हैं तथा जिन तत्वों से मिलकर इसका निर्माण होता है उसे वायुमंडल का संघटन कहते हैं। वायुमंडल विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिस में सर्वाधिक मात्रा में नाइट्रोजन गैस पाई जाती है। क्रमशः नाइट्रोजन के बाद ऑक्सीजन, आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, नियान, हिलियम, मिथेन, क्रिप्टन, ओजोन व हाइड्रोजन आदि गैसें आती है।
वायुमंडल का संघटन
वायुमंडल प्रकृति से गंदहीन, स्वादहीन एवं अदृश्य है। वायुमंडल विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण है जिस में सर्वाधिक मात्रा में नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन पाई जाती है। वायुमंडल मैं पाई जाने वाली गैसों में 78% नाइट्रोजन एवं 21% ऑक्सीजन पाई जाती है। यह दो गैसें वायुमंडल की महत्वपूर्ण गैसें हैं जो कि मिलकर वायुमंडल के 99% भाग का निर्माण करती हैं।
गैस | प्रतिशत | गैस | प्रतिशत |
नाइट्रोजन | 78.7 | हाइड्रोजन | 0.005 |
ऑक्सीजन | 20.95 | हिलियम | 0.0005 |
आर्गन | 0.94 | क्रिप्टान | 0.0001 |
कार्बन डाइऑक्साइड | 0.03 | जेयॉन | 0.0001 |
निऑन | 0.0015 | ओजोन | 0.001 |
वायुमंडल में गैसों के अलावा जलवाष्प और धूलकण भी पाए जाते हैं। वायुमंडल का निर्माण तीन प्रकार के तत्वों से हुआ है जिसमें गैसें, जलवाष्प एवं धूलकण आते हैं। मौसम और जलवायु के निर्धारण में जलवाष्प, धूल के कण तथा ओजोन अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। वायुमंडल में उपस्थित गैसों का 99% भाग 32 किलोमीटर की ऊंचाई तक तथा जलवाष्प एवं धूलकण का 90% भाग 10 किलोमीटर की ऊंचाई तक मिलता है।
गैसें
वायुमंडल के निर्माण में गैसों की भूमिका सर्वाधिक है। वायुमंडल का संघटन विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण है।
नाइट्रोजन
नाइट्रोजन गैस वायुमंडल में गैसों में सर्वाधिक मात्रा में पाई जाती है। नाइट्रोजन गैस वायुमंडल के आयतन के 78% भाग का निर्माण करती है।
ऑक्सीजन
ऑक्सीजन गैस जीव जंतुओं के लिए प्राणदायिनी गैस है। यह वायुमंडल के आयतन के 21% भाग का निर्माण करती है।
कार्बन डाइऑक्साइड
कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल के आयतन के 0.03 % भाग का निर्माण करती है। यह एक भारी गैस है तथा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में पेड़ पौधों द्वारा वायुमंडलीय CO2 को अवशोषित कर लिया जाता है। यह सौर विकिरण के लिए पारगम्य तथा पार्थिव विकिरण के लिए अपारगम्य है। इस कारण CO2 वायुमंडल में ग्रीन हाउस प्रभाव का निर्माण करती है। वायुमंडल में CO2 की मात्रा बढ़ने पर तापमान में वृद्धि होती है। सन 2015 में पेरिस समझौते में इसकी मात्रा में कमी किए जाने के संबंध में वैश्विक सहमति बनी है।
ओजोन
ओजोन पृथ्वी तल से 15 से 35 किलोमीटर की ऊंचाई पर समताप मंडल में पाए जाने वाला एक ऐसा गैसीय आवरण है जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है तथा सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकता है। ओजोन परत को क्लोरोफ्लोरोकार्बन एवं नाइट्रस ऑक्साइड से सबसे अधिक खतरा है। जेट विमानों से नाइट्रस ऑक्साइड तथा एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, डिओडरेंट्स आदि से क्लोरोफ्लोरोकार्बन उत्पन्न होती है जोकि ओजोन परत के लिए हानिकारक है। ओजोन परत की मोटाई डाब्सन में मापी जाती है। ओजोन परत को क्षरित होने से बचाने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987) एवं किगाली समझौते (2016) पर सहमति बनी है।
जलवाष्प
वायुमंडल में जलवाष्प की अधिकतम मात्रा 5% तक रहती है तथा इसकी मात्रा तापमान पर आधारित होती है। ऊंचाई पर जाने तथा विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर जलवाष्प की मात्रा में कमी आती है। आर्द्र वातावरण में जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है तथा शुष्क वातावरण में कम। मौसम एवं जलवायु के निर्माण में जलवाष्प की भूमिका सर्वाधिक है।
धूलकण
वायुमंडल में पाए जाने वाले ठोस पदार्थ जो कि कणों के रूप में पाए जाते हैं उन्हें धूलकण कहते हैं। इनमें समुद्री नमक, सूक्ष्म मिट्टी के कण, धुऍं की कालिख, रेत के कण, राख, पराग, धूल तथा उल्कापात के कण शामिल है। धूल कणों की मात्रा उपोष्ण तथा शीतोष्ण क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है। धूल कण आद्रता ग्राही नाभिक या संघनन केंद्र के रूप में कार्य करते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य ( वायुमंडल का संघटन )
- घनीभूत आद्रता– जलवाष्प का पानी की बूंदों में बदलना घनीभूत आद्रता कहलाता है।
- समुद्रतल पर वायुदाब- 1034 gm/cm3 (1034 mb)
- सौर्यिक विकिरण– सूर्य से आने वाली किरणें
- पार्थिव विकिरण– पृथ्वी से जाने वाली किरणें
- ऊंचाई के साथ-साथ ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है।
- ओजोन हल्के नीले रंग की गैस होती है।
- पृथ्वी का औसत तापमान- 15 डिग्री सेंटीग्रेड
- लेग्यूमिनस पौधे वायुमंडलीय नाइट्रोजन ही पोषक तत्वों की पूर्ति करते हैं
- सक्रिय गैसें– गैसें जो अन्य रासायनिक तत्वों के साथ क्रिया कर सकें ( नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड )।
- अक्रिय गैसें– अक्रिय गैसें- गैसें जो अन्य रासायनिक तत्वों के साथ क्रिया नहीं करती ( आर्गन, हीलियम, निऑन, क्रिप्टॉन, जेनॉन आदि )।
यह भी जानें-
भू-आकृति विज्ञान (जियोमोर्फोलॉजी)