राधाकृष्णन आयोग (विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग)

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (राधाकृष्णन आयोग) स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने देश में कई प्रकार के परिवर्तन एवं सुधार लाने का प्रयत्न किया जिनमें से भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधार लाने के प्रयास किये। स्वंत्रता से पूर्व भारतीय शिक्षा सैद्धांतिक मूल्यों पर आधारित थी तथा वास्तविक जीवन से बहुत दूर थी। भारतीय शिक्षा का स्तर अन्य देशों की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से अच्छा नहीं था।

भारतीय शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड तथा अंतर्विश्वविद्यालय शिक्षा परिषद ने भारत सरकार को विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन करने का सुझाव दिया। 4 नवंबर 1948 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन किया गया तथा इस आयोग ने 25 अगस्त 1949 में भारत सरकार को अपनी आख्या सौंप दी। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन इस आयोग के अध्यक्ष थे, अतः विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग को राधाकृष्णन आयोग के नाम से भी जाना जाता है।

राधाकृष्णन आयोग
1948

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के प्रथम उपरष्ट्रपति तथा दूसरे राष्ट्रपति थे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न दिया गया था। देश का पहला भारत रत्न 1954 में डॉ. सर्वपल्ली राधकृष्णन, चक्रवर्ती गोपालाचारी और वेंकटरमन राधाकृष्णन को दिया गया था। स्वंत्रता प्राप्ति के पश्चात राधाकृष्णन आयोग स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग था।
इस आयोग को विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि इस आयोग की नियुक्ति विश्वविद्यालय के शिक्षा के स्तर की व्यवस्था, संरचना की जांच और तत्कालीन समस्याओं का पता लगाकर इस के सन्दर्भ में भारत सरकार को आवश्यक सुझाव देना था।

सुझाव

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (राधाकृष्णन आयोग) ने विश्वविद्यालय के शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए निम्न मुख्य पहलुओं में अपने सुझाव दिए –

  • शिक्षण संकाय
  • शिक्षण का स्तर
  • विश्वविद्यालय का प्रशासन और वित्त
  • विश्वविद्यालय की शिक्षा संरचना और संगठन

शिक्षण संकाय

  • विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (राधाकृष्णन आयोग) के अनुसार शिक्षकों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाए-
  1. प्रोफेसर
  2. पाठक
  3. व्याख्यात
  4. प्रशिक्षक
  • शिक्षण कार्य की समय सीमा सप्ताह में 18 घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • शिक्षक की सेवा अवकाश की उम्र 60 से बढ़ाकर 64 वर्ष कर दी जाए।

शिक्षण का स्तर

शिक्षण के स्तर के लिए आयोग ने निम्न सुझाव दिए-

  • विश्वविद्यालयों में 3000 से अधिक और उनसे सम्बंधित महाविद्यालयों में 1500 से अधिक विद्यार्थीयों की संख्या नहीं होनी चाहिए।
  • कार्य दिवसों की संख्या एक साल में 180 (परीक्षा को छोडकर)।
  • अध्ययन के किसी भी कोर्स के लिए पाठ्य-पुस्तक निर्धारित नहीं करनी चाहिये।
  • परीक्षाओं के स्तर को उठाने के लिए 1st 2nd और 3rd श्रेणी के लिए न्यूनतम प्राप्तांक क्रमशः 70, 55 और 40 प्रतिशत होनी चाहिए।

विश्वविद्यालय का प्रशासन एवं वित्त

विश्वविद्यालय के प्रशासन एवं वित्त से संबंधित सुझाव निम्न थे-

  • उच्च शिक्षा को समवर्ती सूचि में रखा जाना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को इसमें साझी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। शिक्षा में सम्बंधित नीतियां बनाने का कार्य केंद्र सरकार का होगा और राज्य सरकार उन नीतियों को अपने राज्यों में लागू करेंगी।
  • विश्वविद्यालय में एकरूपता लाने और महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को अनुदान प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की जानी चाहिए।

विश्वविद्यालय शिक्षा की संरचना और संगठन

विश्वविद्यालय शिक्षा की संरचना और संगठन के लिए आयोग ने निम्न सुझाव दिए-

  • उच्च शिक्षा के तीन स्तर
  1. स्नातक तीन वर्ष
  2. स्नातकोत्तर दो वर्ष
  3. शोध न्यूनतम दो वर्ष
  • उच्च शिक्षा की तीन श्रेणियां
  1. कला
  2. विज्ञान
  3. व्यावसायिक और तकनीकी
  • व्यावसायिक और तकनीकी विषयों के लिए विश्वविद्यालयों में अलग-अलग विभाग खोले जाने चाहिए।
  • शिक्षक शिक्षा, कृषि शिक्षा, वाणिज्य शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, कानूनी शिक्षा।

उद्देश्य

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (राधाकृष्णन आयोग) के निम्न उद्देश्य थे-

  • विश्वविद्यालयी शिक्षा के उद्देश्यों को निश्चित करना
  • पुनर्गठन
  • पाठ्यचर्या
  • प्राध्यापक
  • छात्रावास, छात्र
  • अवधि, माध्यम

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के सदस्य

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (राधाकृष्णन आयोग) के सदस्यों के नाम निम्नवत हैं-

अध्यक्ष- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
सदस्य- डॉ. तारा चंद, सर जेम्स ए. डफ़, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, डॉ. आर्थर मॉर्गन, डॉ. ए लक्ष्मणस्वामी मुदालियर, डॉ. मेघनाद साहा, डॉ. कर्म नारायण बहल, डॉ. जॉन जे. टिगेरट, श्री निर्मल कुमार सिद्धांता।

आयोग की आख्या

आयोग द्वारा एक प्रश्नावली तैयार की गयी जो कि भारतीय विश्वविद्यालयों की अवस्था, समस्याओं तथा उनके उपचार से सम्बंधित था। लगभग 1000 विश्वविद्यालयों को मेल किया गया जिनमें से 600 ने जवाब दिया और वापस भेजा।
दूसरा उन्होंने सीधे विश्वविद्यालयों के कुलपति, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों से मिलकर विश्वविद्यालय समस्याओं को समझा।
आयोग की आख्या को पूर्ण होने में 9 महीने लगे। आख्या का कार्य 4 नवंबर 1948 में शुरू हुआ और 25 अगस्त 1949 में आयोग ने आख्या को भारत सरकार को सौंप दिया। आख्या को संपन्न करने में 747 पृष्ठ लगे जिसे 15 अध्यायों में विभाजित किया गया था।

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