मुदालियर आयोग- कहा जाता है बुनियादी शिक्षा का अच्छा होना आवश्यक है। यदि बुनियादी शिक्षा अच्छी होगी तो आगे की शिक्षा और मजबूत होगी। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के गठन के बाद माध्यमिक शिक्षा के स्तर को बढ़ाने की आवश्यकता पड़ी। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन विश्वविद्यालय शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए किया गया था किंतु माध्यमिक शिक्षा के स्तर में कमी के कारण विश्वविद्यालय शिक्षा के स्तर को बढ़ाना संभव नहीं था अतः सरकार द्वारा यह निश्चय किया गया की जब माध्यमिक शिक्षा का स्तर बढ़ेगा तब विश्वविद्यालय शिक्षा का स्तर बढ़ेगा। अतः विश्वविद्यालय शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन किया गया।
माध्यमिक शिक्षा आयोग के गठन से पूर्व माध्यमिक शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के द्वारा ताराचंद कमेटी के गठन का सुझाव दिया गया। सन 1948-1949 में भारतीय सरकार द्वारा गठित विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग अर्थात राधाकृष्णन आयोग के द्वारा विश्वविद्यालय शिक्षा से संबंधित कई सुझाव दिए गए जिनमें से एक सुझाव विश्वविद्यालय शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए ताराचंद कमेटी की नियुक्ति का भी था। सन 1948 में भारत सरकार द्वारा माध्यमिक शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए ताराचंद कमेटी को नियुक्त किया गया। ताराचद कमेटी द्वारा 1949 में एक रिपोर्ट तैयार की गई तथा भारतीय सरकार को सौंपी गई जिसमें उन्होंने माध्यमिक शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए सुझाव प्रस्तुत किए थे।
ताराचद कमेटी द्वारा माध्यमिक शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए निम्न सुझाव दिए गए :-
1- जूनियर बेसिक शिक्षा 5 वर्ष, सीनियर बेसिक शिक्षा 3 वर्ष, माध्यमिक शिक्षा 4 वर्ष।
2- माध्यमिक स्तर पर बहूउद्देश्य विद्यालय खोले जाएं।
3- मातृभाषा की शिक्षा केवल जूनियर बेसिक लेवल तक होनी चाहिए तथा राष्ट्रभाषा हिंदी को सीनियर बेसिक लेवल में मातृभाषा के साथ पढ़ाना अनिवार्य रखा जाए।
4- माध्यमिक शिक्षा के अंत में बाहरी परीक्षा अर्थात एक्सटर्नल एग्जाम लिए जाएं।
5- माध्यमिक शिक्षा के परिणाम के आधार पर ही विश्वविद्यालय में प्रवेश दिया जाना चाहिए। अगर विश्वविद्यालय चाहे तो प्रवेश परीक्षा के आधार पर भी विश्वविद्यालय में दाखिला दे सकता है।
6- शिक्षकों का वेतनमान एवं सेवा को सीएबीई (CABE) के द्वारा निश्चित किया जाए।
राधाकृष्णन आयोग तथा ताराचंद कमेटी द्वारा दिए गए सुझावों में कमी तथा अपूर्ण होने के कारण 1951 में भारत सरकार को माध्यमिक शिक्षा आयोग को स्थापित करने का सुझाव दिया गया अतः 23 सितंबर 1952 में भारत सरकार द्वारा माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन किया गया। माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन डॉक्टर लक्ष्मणस्वामी मुदालियर के अध्यक्षता में संपन्न हुआ जो कि उस समय के मद्रास विश्वविद्यालय के कुलपति थे। डॉक्टर लक्ष्मणस्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन होने से इस आयोग को इनके नाम पर मुदालियर आयोग के नाम से भी जाना जाता है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने मुख्य पाठ्यचर्या में विविधता लाने, एक मध्यवर्ती स्तर जोड़ने तथा तृतीय स्नातक पाठ्यक्रम शुरू करने इत्यादि की सिफारिशें की।
मुदालियर आयोग के सदस्य
मुदालियर आयोग जिसका गठन डॉक्टर लक्ष्मणस्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में हुआ के निम्न सदस्य हैं जिनके नेतृत्व में मुदालियर आयोग का गठन हुआ –
अध्यक्ष- डॉक्टर लक्ष्मणस्वामी मुदालियर
सचिव- एम. एन. बसु
अन्य सदस्य- डॉ. जॉन क्रिस्टी, डॉ. केनेथ रास्ट विलियम्स, श्रीमती हंसा मेहता, श्री जे. ए. तारपोरेवाला, डॉ. के. एल. श्रीमाली, श्री एम. टी. व्यासऔर श्री के. जी. सैय्यदान।
मुदालियर आयोग के उद्देश्य
मुदालियर आयोग के निम्न उद्देश्य थे –
1- भारत की तात्कालीन माध्यमिक शिक्षा की स्थिति का अध्ययन कर उसके बारे में प्रतिवेदन या आख्या तैयार करना।
2- माध्यमिक शिक्षा के प्रशासन एवं संगठन का अध्ययन करना तथा सुधार हेतु सुझाव प्रदान करना।
3- माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण स्तर की जानकारी प्राप्त करना तथा उससे संबंधित सुझाव देना।
4- विभिन्न प्रकार के माध्यमिक विद्यालयों के मध्य संबंध ज्ञात करना।
5- माध्यमिक शिक्षा के प्राथमिक बेसिक तथा उच्च शिक्षा के संबंध में जानकारी प्राप्त करना।
6- माध्यमिक शिक्षा से संबंधित अन्य समस्याओं की जानकारी प्राप्त करना।
तात्कालिक माध्यमिक शिक्षा के दोष
मुदालियर आयोग द्वारा दिए गए प्रतिवेदन में आयोग ने सर्वप्रथम भारीतय सरकार का ध्यान माद्यमिक शिक्षा की कमियों तथा समस्याओं की ओर डाला।तात्कालिक माध्यमिक शिक्षा के निम्न दोष थे –
1- पाठ्यक्रम का व्यावहारिक संकीर्ण एवं एकांगी होना।
2- छात्रों की संख्या अधिक होने के कारण शिक्षक छात्र के अनुपात में असमानता का होना।
3- दोष पूर्ण परीक्षा प्रणाली।
4- शिक्षण विधियां एवं समय सारणी में कमी।
5- शिक्षक की नियुक्ति का अस्तित्व मानदंड नहीं होना।
6- पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की उचित व्यवस्था ना होना।
7- माध्यमिक शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य विश्वविद्यालय शिक्षा में प्रवेश लेना।
माध्यमिक शिक्षा आयोग की संस्तुतियां
1- 4 या 5 वर्ष की प्राइमरी शिक्षा।
2- माध्यमिक शिक्षा के दो भाग होने चाहिए-
i) जूनियर माध्यमिक शिक्षा (3 वर्ष )और
ii) उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (4 वर्ष )।
3- वस्तुनिष्ठ परीक्षा पद्धति को अपनाया जाए।
4- संख्यात्मक अंकों के स्थान पर सांकेतिक अंकों का प्रयोग किया जाए।
5- उच्च तथा उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के स्तर में एक मूल विषय रखा जाए जो अनिवार्य हो।
6- ग्रामीण विद्यालयों में कृषि शिक्षा की व्यवस्था।
7- बालिकाओं के लिए गृह विज्ञान विषय की शिक्षा व्यवस्था।
मुदालियर आयोग द्वारा दिया गया प्रत्यावेदन
मुदालियर शिक्षा आयोग द्वारा माध्यमिक शिक्षा के स्तर को उठाने के लिए या बढ़ाने के लिए जो आख्या तैयार करनी थी उसके लिए उन्होंने दो मुख्य विधियों का प्रयोग किया जिसके अंतर्गत उन्होंने प्रश्नावली वह साक्षात्कार का प्रयोग किया । प्रश्नावली का निर्माण किया गया था। प्रश्नावली को डाक द्वारा विभिन्न विद्यालयों एवं संस्थानों के शैक्षिक विशेषज्ञ, शिक्षकों एवं प्रधानाचार्य को भेजा गया। प्राप्त आंकड़ों का संग्रहण करके एक सांख्यिकीय आंकड़ों की सूची तैयार की गई।
दूसरी विधि में आयोग के सदस्यों द्वारा भारत के विभिन्न विद्यालयों में जाके वहां के शिक्षकों प्रधानाचार्य तथा शैक्षिक विशेषज्ञों से साक्षात्कार करके उनसे माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर होने वाली समस्याओं की जानकारी प्राप्त की। दोनों विधियों द्वारा प्राप्त किए गए सूचना के आधार पर आयोग द्वारा एक प्रत्यावेदन या आख्या तैयार की गई तथा भारत सरकार को 29 अगस्त 1953 को सौंप दी गई। अखियां यह प्रतिवेदन को संपन्न करने में 244 पृष्ठ लगे जिनको 14 अध्यायों में बांटा गया ।
यह भी जानें
शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा (meaning and definition of education)
समकालीन भारतीय समाज में शिक्षा के उद्देश्य
आचार्य नरेंद्र देव समिति (1952-1953)
राधाकृष्णन आयोग (विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग)