एक शिक्षक बच्चों को पाठ्यचर्या के अनुसार अध्ययन कराता है तथा बच्चों को उनके लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता करता है, अतः सर्वप्रथम हमारा यह जानना आवश्यक है कि पाठ्यचर्या का अर्थ (Pathycharya ka arth) क्या होता है ? जिस पर पूरी शिक्षा प्रणाली चलती है । शिक्षा का अध्ययन करके हमने जाना है कि शिक्षा एक त्रि-ध्रुवीय प्रक्रिया है जिसके एक ध्रूव में शिक्षक, दूसरे में विद्यार्थी और तीसरे में पाठ्यचर्या आती है। तीनों की अपनी-अपनी महत्ता होती है अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षा की प्रक्रिया का पाठ्यचर्या की अनुपस्थिति में या अभाव में सुचारु रूप से संपन्न होना संभव नहीं है।
पाठ्यचर्या शिक्षक एवं शिक्षार्थी के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती है। पाठ्यचर्या एक मात्र ऐसा साधन है जो शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्य के सम्बन्ध को मजबूत बनाता है। शिक्षक एवं शिक्षार्थी अपने पाठ्यचर्या के अनुसार ही शिक्षण कार्य को संपन्न करते हैं।
अतः शिक्षक एवं शिक्षार्थी के अलावा पाठ्यचर्या भी अपनी एक अलग महत्ता रखता है। पाठ्यचर्या के बिना शिक्षा एवं शिक्षार्थी निरर्थक हैं। अतः शिक्षा के लिए शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यचर्या का होना आवश्यक है।
पाठ्यचर्या का अर्थ (Pathycharya ka arth)
पाठ्यचर्या एक प्रकार का मार्गदर्शन है जो कि शिक्षक और शिक्षार्थी को बताता है कि शिक्षा की शुरुआत कहाँ से करनी है और किस प्रकार से करनी है। पाठ्यक्रम हमें क्रम से अध्ययन करने को कहता है तथा ज्ञात से अज्ञात की और ले जाने वाले सिद्धांत का अनुसरण करता है। पाठ्यक्रम एक विषय का दूसरे विषयों से सह-सम्बन्ध स्थापित करता है जो कि विद्यार्थियों के सीखने में सहायक सिद्ध होता है।
पाठ्यचर्या के अर्थ को हम तीन रूप से समझ सकते हैं या परिभाषित कर सकते हैं-
- शाब्दिक अर्थ
- सूक्ष्म/संकुचित अर्थ
- वृहत/व्यापक अर्थ
शाब्दिक अर्थ (Pathycharya ka arth)
पाठ्यचर्या आंग्ल भाषा करिकुलम (Curriculum) का हिंदी रूपांतरण है। करिकुलम शब्द लैटिन भाषा के कुर्रेर (Currer) शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है रेस कोर्स (Race course) अर्थात दौड़ का मैदान।
दौड़ के मैदान से यह तात्पर्य है कि जिस प्रकार दौड़ के मैदान में एक धावक (Racer) विभिन्न कठिनाइयों को पार करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करता है उसी प्रकार पाठ्यचर्या में भी छात्र अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्तरों से होकर गुजरता है।
सूक्ष्म अर्थ (Pathycharya ka arth)
सूक्ष्म अर्थ में पाठ्यचर्या (Curriculum) को पाठ्यवस्तु (Syllabus) का पर्याय मान लिया जाता है जो कि सीमित होता है। पाठ्यवस्तु का तात्पर्य हुआ वह ज्ञान जो कि केवल पुस्तकों तक ही सीमित है। सीमित ज्ञान होने की वजह से यह केवल पुस्तकों में लिखे गए ज्ञान को समझने एवं उसे रटने तक ही सीमित रह जाता है। अतः इस अर्थ के अनुसार बालक केवल पुस्तकों में दिए गए ज्ञान को ही प्राप्त कर पाता है तथा वास्तविक जीवन से अनभिज्ञ रहता है।
वृहत अर्थ (Pathycharya ka arth)
पाठ्यचर्या के वृहत अर्थ (Pathycharya ka arth) को देखा जाए तो पाठ्यचर्या के अंतर्गत वह सारी क्रियाएं एवं अनुभव (समाहित हो जाते हैं) आ जाते हैं जो बालक विद्यालय के अंदर एवं विद्यालय के बाहर प्राप्त करता है तथा अपना सर्वांगीड़ विकास करता है। इस अर्थ के अनुसार बालक विद्यालय में प्राप्त ज्ञान के साथ-साथ विद्यालय के बाहर से मिलने वाले ज्ञान को भी प्राप्त करता है तथा वास्तविक जीवन का दर्शन कर उसे समझता है और अपने जीवन काल में उसका प्रयोग करता है।
पाठ्यचर्या से आशय (Pathycharya ka arth) छात्र द्वारा प्राप्त किये गए समग्र ज्ञान से है जो वह अपनी शैक्षिक प्रक्रिया के दौरान प्राप्त करता है। यहाँ समग्र ज्ञान का तात्पर्य छात्र द्वारा प्राप्त किये गए उन सारे अनुभवों तथा क्षेत्र से है जहाँ से वह ज्ञान प्राप्त करता है या सीखता है।
जैसे:-
कक्षा-कक्ष में चलने वाला कार्यक्रम,
सामाजिक कार्यक्रम,
सामाजिक विकास के कार्यक्रम,
सांस्कृतिक विकास के कार्यक्रम,
मानसिक विकास के कार्यक्रम,
शारीरिक विकास के कार्यक्रम,
मूल्य विकास के कार्यक्रम आदि।
पाठ्यचर्या की परिभाषाएं
पाठ्यचर्या एक वृहत विषय है तथा इस विषय में कई शिक्षाशास्त्री मनोवैज्ञानिक एवं विद्वानों ने अपने मत दिये हैं। पाठ्यचर्या को पाठ्यक्रम भी कहते हैं तथा पाठ्यचर्या की परिभाषाएं निम्न हैं-
कनिंघम के अनुसार,
“पाठ्यक्रम शिक्षक के हाथ में एक साधन है जिससे यह अपने विद्यालय में अपने उद्देश्य के अनुसार अपने छात्र को कोई भी रूप दे सकता है।”
मुनरो के अनुसार,
“पाठ्यक्रम को मानव जाति के सम्पूर्ण ज्ञान तथा अनुभव का सार समझना चाहिए।”
शिक्षा आयोग के अनुसार,
“विद्यालय पाठ्यक्रम अधिगम-अनुभव की वह समग्रता है जो विद्यालय द्वारा छात्रों को विद्यालय में बाहर की बहुमुखी क्रियाओं द्वारा प्रदान की जाती है। ये समस्त क्रियाएँ विद्यालय के परिनिरीक्षण में संचालित की जाती हैं।”
ले के अनुसार,
“पाठ्यक्रम का विस्तार वहाँ तक है, जहां तक जीवन का।”
हेनरी के अनुसार,
“पाठ्यक्रम में वे सभी क्रियाएं आती हैं जो स्कूल में विद्यार्थियों को दी जाती हैं।”
क्रो एवं क्रो के अनुसार,
“पाठ्यक्रम विद्यार्थी के उन समस्त अनुभवों से सम्बंधित होता है, जो उसे विद्यालय में और उससे बाहर प्राप्त होते हैं, सामाजिक, मानसिक, आध्यात्मिक तथा नैतिक विकास में सहायक है।”
व्यूसैम्प के अनुसार,
“विद्यालय में बालकों के शैक्षिक अनुभव के लिए एक सामाजिक समूह की रुपरेखा पाठ्यक्रम कहलाता है।”
उपसंहार
पाठ्यक्रम के अर्थ (Pathycharya ka arth) एवं परिभाषाओं के अनुसार पाठ्यक्रम शिक्षा के त्रिध्रुवीय प्रक्रिया का एक मूल अंग है। पाठ्यक्रम शिक्षा के क्षेत्र में रीढ़ की हड्डी के समान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पाठ्यक्रम के अभाव में शिक्षक एवं शिक्षार्थी का होना निरर्थक है। पाठ्यक्रम शिक्षक एवं शिक्षार्थी का मार्गदर्शन करके बताता है कि शिक्षक को क्या सिखाना है और शिक्षार्थी को क्या सीखना है। पाठ्यक्रम के अंतर्गत सारे विषय आ जाते हैं तथा वे सारे विषय एक-दूसरे से सह-संबंधता रखते हैं।
पाठ्यक्रम के अंतर्गत हम विद्यालय में एवं विद्यालय के बाहर जो भी ज्ञान मिलता है, उसे प्राप्त करते हैं। पाठ्यक्रम का शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है जो कि बालक को क्रम के अनुसार ज्ञान की प्राप्ति करने के लिए प्रेरित करता है।
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मापन के स्तर (Levels of Measurement)
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