कोठारी आयोग – स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए शिक्षा व्यवस्था का पुनः निर्माण किया गया। सर्वप्रथम भारत सरकार द्वारा शिक्षा में सुधार लाने के लिए विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन 4 नवंबर 1948 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अध्यक्षता में किया गया। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने कई सुझाव दिए जिनमें से कुछ लागू हुए और कुछ लागू नहीं हुए। अतः विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग कई उद्देश्यों की प्राप्ति करने में असमर्थ रहा। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के बाद शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के लिए एक नये आयोग का गठन किया गया।
मुदालियर आयोग (माध्यमिक शिक्षा आयोग) जिसका गठन 23 सितंबर 1952 में डॉक्टर लक्ष्मणस्वामी मुदालियर के अध्यक्षता में संपन्न हुआ। माध्यमिक शिक्षा आयोग द्वारा कई सुझाव दिए गए जिनका अनुसरण कर सरकार द्वारा कई प्रांतों में माध्यमिक शिक्षा आयोग का पुनर्गठन किया गया। पर वांछित उद्देश्य प्राप्त करने में माध्यमिक शिक्षा आयोग भी विफल रही। अतः शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए भारत सरकार द्वारा संपूर्ण देश में एक समान शिक्षा नीति के लिए 14 जुलाई 1964 में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन किया गया तथा आयोग द्वारा महात्मा गांधी के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर 2 अक्टूबर 1964 में आयोग की शुरुआत की गई। आयोग के उद्घाटन के समय भारत के राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने अपने भाषण में कहा कि
”यह मेरी हार्दिक इच्छा है कि यह आयोग जिसने विश्व के प्रगतिशील क्षेत्रों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित हैं। शिक्षा के सभी पहलुओं का सर्वेक्षण करेगा और ऐसे सुझाव देगा जो हमारे शिक्षा प्रणाली के सभी स्तरों को लाभ पहुंचाएगा”
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन डॉ. डी. एस. कोठारी जो कि उस समय के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष थे की अध्यक्षता में संपन्न हुआ, अतः राष्ट्रीय शिक्षा आयोग को कोठारी आयोग के नाम से भी जाना जाता है।
कोठारी आयोग फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, अमेरिका और रूस की शैक्षिक परिषद का सदस्य था।
कोठारी आयोग की विशेषताएं
कोठारी आयोग की तीन विशिष्ट विशेषताएं थी –
1- कोठारी आयोग पूर्व आयोगों के समान किसी विशिष्ट क्षेत्र या शिक्षा के पहलू पर अपनी जांच को सीमित नहीं रखना चाहती थी। कोठारी आयोग ने संपूर्ण शिक्षा की व्यापक समीक्षा की।
2- आयोग का दृढ़ विश्वास था की राष्ट्रीय विकास के लिए शिक्षा एक सबसे शक्तिशाली साधन है। अतः अखियां का शीर्षक “एजुकेशन एंड नेशनल डेवलपमेंट” रखा गया।
3- कोठारी आयोग अंतरराष्ट्रीय संयोजन पर आधारित थी जिसके 17 सदस्य थे जिनमें से छह विदेशी थे। 6 सदस्य लंदन, यू. एस. ए., टोक्यो, मॉस्को और यूनेस्को से थे।
कोठारी आयोग के उद्देश्य
भारत सरकार द्वारा घोषणा की गई कि कोठारी आयोग का मुख्य उद्देश्य भारतीय सरकार को शिक्षा के हर क्षेत्र व पहलुओं के विकास के लिए शिक्षा की प्रारूप में सामान्य सिद्धांत व नीतियों के सुझाव देगी। आयोग का निर्माण शैक्षिक नीतियां, राष्ट्रीय स्तर की शिक्षा एवं शिक्षा के हर क्षेत्र में विकास की संभावनाओं के लिए सरकार को सुझाव देने का था।
कोठारी आयोग के निम्न उद्देश्य थे।
1- शिक्षा को उत्पादकता से जोड़ना
2- राष्ट्रभाषा हिंदी का विकास
3- सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक तथा राष्ट्रीय मूल्यों का विकास
4- शिक्षा द्वारा राष्ट्र का आधुनिकीकरण करना
5- तात्कालीन शिक्षा प्रणाली का गहराई से अध्ययन कर उसकी कमियों एवं समस्याओं का पता लगाना तथा उन कमियों एवं समस्याओं के सुधार के लिए सुझाव देना।
6- संपूर्ण देश में समान शिक्षा प्रणाली की नीति को प्रस्तावित करना।
आयोग की आख्या या प्रतिवेदन
आयोग ने प्रतिवेदन को संपन्न करने के लिए दो विधियों का प्रयोग किया जिनमें से एक थी प्रश्नावली और दूसरी सर्वेक्षण एवं साक्षात्कार। आयोग द्वारा एक लंबी प्रश्नावली तैयार की गई तथा प्रश्नावली को शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों से संबंध रखने वाले 5000 लोगों को भेजा गया। 5000 लोगों में से 2400 लोगों ने प्रश्नावली का जवाब भेजा। आयोग द्वारा देश के विभिन्न प्रांतों के विद्यालयों, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, शिक्षकों और विद्वानों से साक्षात्कार किया गया। दोनों विधियों द्वारा प्राप्त किए गए परिणामों के आधार पर आयोग के मध्य चर्चा हुई तथा 29 जून 1966 में आयोग ने इसे एजुकेशन एंड नेशनल डेवलपमेंट नाम दिया तथा सरकार को सौंप दिया। आख्या को केंद्रीय शिक्षा मंत्री एम.सी. छगला को सौंपा गया था।
आख्या को संपन्न करने में 692 पृष्ठ लगे जिन्हें 3 खंडों में विभाजित किया गया। प्रथम खंड में 6 अध्याय थे जिसमें शिक्षा के विभिन्न स्तरों के पुनः निर्माण से संबंधित सामान्य विश्लेषण की जानकारी एवं शिक्षा के राष्ट्रीय उद्देश्य आदि की जानकारी दी गई थी। दूसरे खंड में 11 अध्याय थे जिनमें विद्यालय शिक्षा, उच्च शिक्षा आदि शिक्षा से संबंधित क्षेत्रों की समस्याओं का विश्लेषण था। तीसरे खंड में 2 अध्याय थे जिसमें शिक्षा के संगठन व प्रशासन आदि के बारे में चर्चा की गई थी।
राष्ट्रीय शिक्षा योजना की आख्या की शुरुवात एक वाक्य से हुई थी – भारत का भाग्य उसकी कक्षा में आकार ले रहा है।
आख्या की सिफारिशें
कोठारी आयोग ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था की कमियों व समस्याओं को दूर करने के लिए भारतीय सरकार को निम्न सुझाव दिए। भारत में शैक्षिक मॉडल बनाने के लिए आयोग ने जिन चीजों पर जोर दिया था उनमें से मुख्य थे
आंतरिक परिवर्तन
गुणात्मक परिवर्तन
शैक्षिक सुविधाओं का विस्तार
आंतरिक परिवर्तन से संबंधित सुझाव
1- शैक्षिक ढांचे को 10+2+3 में व्यवस्थित किया जाए।
2- पूर्व प्राथमिक शिक्षा जिसमें मांटेसरी, किंडरगार्टन जैसे अलग-अलग नाम दिए गए हैं उन्हें बदलकर पूर्व माध्यमिक या प्राथमिक शिक्षा के रूप में नाम दिया जाना चाहिए।
3- विषय विभाजन कक्षा 9 के बदले कक्षा 10 के बाद होना चाहिए।
4- माध्यमिक विद्यालय दो प्रकार के होंगे-
जूनियर माध्यमिक (उच्च प्राथमिक)
उच्च माध्यमिक
5- स्नातक का अध्ययन 3 वर्ष का होगा।
6- 25% माध्यमिक स्कूलों को व्यवसायिक स्कूल में परिवर्तित कर दिया जाए। उच्च माध्यमिक स्तर पर कम से कम 50% बच्चों के लिए व्यवसायिक शिक्षा प्रदान करें।
7- स्कूलों में 234 दिन व कॉलेजों में 216 दिन निर्धारित किए जाएं।
8- राष्ट्रीय अवकाश में कमी लाई जाए।
9- राज्य एवं राष्ट्रीय बोर्ड आयोजित किए जाएं।
10- समान पाठ्यक्रम के जरिए बालक एवं बालिकाओं को विज्ञान व गणित की शिक्षा दी जाए।
11- बालक एवं बालिकाओं को शिक्षा का समान अवसर प्रदान किया जाए।
12- सभी छात्रों को प्राइमरी कक्षाओं में मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाए। माध्यमिक स्तर (सेकेंडरी लेवल) पर स्थानीय भाषाओं में शिक्षण को प्रोत्साहन दिया जाए।
13- 6 वर्ष पूर्ण होने पर ही पहली कक्षा में नाम अंकित किया जाए। उससे पूर्व 1 से 3 वर्ष की पूर्व प्राथमिक शिक्षा दी जाए।
14- कॉमन स्कूल सिस्टम लागू किया जाए तथा स्नातक तक की शिक्षा मातृभाषा में दी जाए।
15- पाठ्यक्रम को दो स्तरों में विभाजित किया गया (1) राज्य स्तर एवं (2) राष्ट्रीय स्तर तथा इसी पाठ्यक्रम के अनुसार विद्यालयों में शिक्षा दी जाए।
16- आयोग ने 3 भाषा सूत्र अर्थात थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला दिया तथा मातृभाषा, राष्ट्रभाषा हिंदी और अंग्रेजी भाषा सिखाई।
17- आयोग ने प्रौढ़ शिक्षा से संबंधित सुझाव भी दिए जिनमें उन्होंने 15 से 30 वर्ष के अनपढ़ लोगों के लिए विद्यालय में व्यवस्था होने के बारे में बताया। विद्यालय के समय से पहले या बाद में प्रौढ़ शिक्षा का समय व्यवस्थित किया जाए।
यह भी जानें
आचार्य नरेंद्र देव समिति (1952-1953)
राधाकृष्णन आयोग (विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग)
University Grants Commission (India)