उपलब्धि परीक्षण

उपलब्धि परीक्षण

उपलब्धि परीक्षण का प्रयोग छात्रों द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धियों का मापन करने से है। उपलब्धि परीक्षण का तात्पर्य यह हुआ कि शिक्षक द्वारा दिए गए ज्ञान को छात्रों ने कितना अर्जित किया है अर्थात छात्रों ने कितने ज्ञान की उपलब्धि प्राप्त की है इसका मापन करने के लिए शिक्षक द्वारा उपलब्धि परीक्षण किया जाता है।इसके अंतर्गत शिक्षक छात्रों को कक्षा में पढ़ाता है और एक निश्चित समय अंतराल के पश्चात शिक्षक यह जानने की कोशिश करता है कि छात्रों द्वारा कितना ज्ञान ग्रहण किया गया है। इसे पता करने के लिए शिक्षक उपलब्धि परीक्षण का प्रयोग करता है।उपलब्धि परीक्षण को कुछ विद्वानों द्वारा निष्पति परीक्षण तथा कुछ के द्वारा संप्राप्ति परीक्षण भी कहा जाता है।

परिचय

जब शिक्षकों द्वारा कक्षाओं में छात्रों को विभिन्न विषयों में ज्ञान अर्जित कराया जाता है तत्पश्चात शिक्षकों का यह जानना आवश्यक होता है कि छात्रों द्वारा कितना ज्ञान अर्जित किया गया है अर्थात छात्रों को जो शिक्षा दी गई उस शिक्षा को उन्होंने कितना सीखा। छात्रों द्वारा प्राप्त किए गए ज्ञान को जानने के लिए मापन एवं मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है।

छात्रों द्वारा प्राप्त किए ज्ञान का मापन एवं मूल्यांकन करने के लिए उपलब्धि परीक्षण का निर्माण किया जाता है तथा उपलब्धि परीक्षण की सहायता से पता लगाया जाता है कि बालक ने कितना सीखा और क्या सीखा। उपलब्धि परीक्षण की सहायता से हम छात्र के रुचि एवं क्षमताओं का भी आसानी से पता लगा लेते हैं जिनके द्वारा शिक्षक छात्रों की रुचि एवं क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रयास करता है।

उपलब्धि परीक्षण का इतिहास

सर्वप्रथम मानकीकृत वस्तुनिष्ठ उपलब्धि परीक्षण को 1895 में राईस महोदय द्वारा विकसित किया गया था। राईस महोदय ने पूरे देश में चौथी कक्षा के 16,000 छात्रों के लिए 50 शब्दों के वर्तनी परीक्षण के लिए मानकीकृत वस्तुनिष्ठ उपलब्धि परीक्षण कराया।

बीसवीं सदी से पूर्व कई एकल-विषय उपलब्धि परीक्षण लिए गए। माना जाता है कि 1920 से पहले इस प्रकार के उपलब्धि परीक्षण नहीं हुए थे। 1923 में, प्रारंभिक मानसिक स्तर पर स्टैनफोर्ड-उपलब्धि परीक्षा, 1925 में आयोवा हाईस्कूल द्वारा प्रकरण से संबंधित परीक्षाएं संपन्न कराई गई। 1970 के दशक में मानक परीक्षणों को विकसित किया गया। 1990 के दशक की शुरुआत में उपलब्धि परीक्षण पर साहित्य अव्यक्त-लक्षण-सिद्धांत, विषय प्रतिक्रिया वक्र और शिक्षण उपलब्धि का एक मूल्यांकन जो अनुदेशात्मक प्रक्रिया में बनाया गया था, से संबंधित था।

उपलब्धि परीक्षण को सामान्य रूप में देखा जाए तो प्रश्न-पत्र कहा जाता है। पहले उपलब्धि-परीक्षण के द्वारा यह पता किया जाता था कि बालक ने कितना ज्ञान प्राप्त किया है अर्थात छात्र के व्यवहार में किस प्रकार का परिवर्तन आया है तथा उन्हें जो पढ़ाया और सिखाया गया है उस ज्ञान का छात्र अन्य परिस्थितियों में किस प्रकार से प्रयोग करेगा।

उपलब्धि-परीक्षण की परिभाषाएं

उपलब्धि परीक्षण पर निम्न शिक्षा शास्त्रियों एवं विद्वानों ने अपनी मत दिए हैं।

ईबेल के अनुसार,
“उपलब्धि परीक्षण वह है जो किसी छात्र के द्वारा अर्जित ज्ञान या कौशलों में निपुणता का मापन करने के लिए बनाया जाता है।”

थार्नडाइक के अनुसार,
“जब हम एक उपलब्धि परीक्षण का उपयोग करते हैं तो हम यह निर्धारित करने में रुचि रखते हैं कि किसी व्यक्ति ने विशेष प्रकार के निर्देशों के संपर्क में आने के बाद क्या सीखा है।”

गैरिसन एवं अन्य के अनुसार,
“उपलब्धि परीक्षण बच्चे की वर्तमान क्षमता या एक विशिष्ट सामग्री क्षेत्र में उसके ज्ञान की सीमा को मापता है।”

हेनरी चौंसी के अनुसार,
“हर मामले में उपलब्धि परीक्षण किसी ना किसी रूप में एक प्रदर्शन की पेशकश के लिए कहता है जिसका मूल्यांकन किया जा सकता है।”

उपलब्धि परीक्षण के उद्देश्य

उपलब्धि परीक्षण का मुख्य कार्य मूल्यांकन करना है। अतः उपलब्धि परीक्षण की सहायता से छात्र एवं शिक्षक दोनों का मूल्यांकन किया जा सकता है। उपलब्धि परीक्षण के उद्देश्य निम्न है –

1- विद्यालय में प्रवेश हेतु छात्रों का चयन करना।

2- शिक्षकों के शिक्षण कार्य का मूल्यांकन करना।

3- शिक्षकों के शिक्षण कौशल का मूल्यांकन करना।

4- शिक्षकों द्वारा शिक्षण विधि का चयन करना।

5- पाठ्यक्रम के रूप में परिवर्तन लाने में।

6- छात्रों को उनकी क्षमताओं के आधार पर वर्गीकृत करने में।

7- शैक्षिक समस्याओं के समाधान के लिए।

8- छात्रों के प्राप्त अंकों के आधार पर उनको आगे के अध्ययन के लिए प्रेरित करना।

9- छात्रों की कक्षोन्नति करने के लिए।

10- छात्रों द्वारा पाठ्यक्रम उपलब्धियों का मूल्यांकन करना।

उपलब्धि परीक्षण के प्रकार

शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धि परीक्षण को हम निम्न आधार पर विभाजित कर सकते हैं

परीक्षाओं के आधार पर

मौखिक परीक्षा – मौखिक परीक्षाएं वे परीक्षाएं होती हैं जिनमें शिक्षक छात्रों से मौखिक रूप में प्रश्न पूछता है तथा छात्र शिक्षक के प्रश्नों का मौखिक रूप में जवाब देते हैं। मौखिक परीक्षा में मूलतः वस्तुनिष्ठ या लघु उत्तरीय प्रश्न पूछे जाते हैं। मौखिक परीक्षाओं के माध्यम से बच्चों के आत्मविश्वास, उनकी भाषा कौशल अर्थात उनके उच्चारण, भाषण एवं अभिव्यक्ति शैली का विकास होता है।

किसी भी प्रकार के परीक्षण का निर्माण उद्देश्य पर आधारित होता है। मौखिक परीक्षण का मुख्य उद्देश्य बच्चों के भाषण कौशल, उच्चारण एवं बच्चों के अंदर के भय को दूर करना आदि हैं। मौखिक परीक्षण का एक मुख्य लाभ दिया है कि परीक्षा के दौरान शिक्षक व शिक्षार्थी एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं जिससे शिक्षक छात्र का पूर्ण रूप से मूल्यांकन कर लेता है किंतु इस प्रकार के परीक्षण में समय की बहुत हानि होती है।

लिखित परीक्षण – लिखित परीक्षण में शिक्षकों द्वारा छात्रों को लिखित रूप में प्रश्न दिए जाते हैं जिनके उत्तर छात्र लिखित रूप में देते हैं। इस प्रकार के परीक्षण में वस्तुनिष्ठ लघु उत्तरीय या निबंधात्मक आदि किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं। इस प्रकार के परीक्षण से बच्चों के सोचने-समझने की क्षमता का विकास होता है तथा उनके लेेखन क्रिया में भी सुधार आता है।

प्रायोगिक परीक्षण – इस प्रकार के परीक्षण में शिक्षकों द्वारा छात्रों को प्रायोगिक कार्य दिए जाते हैं तथा इन कार्यों के आधार पर छात्रों के कौशलों का विकास एवं मूल्यांकन किया जाता है। छात्रों के निम्न प्रकार के कौशलों जैसे, उनके गायन, खेल, कला, विज्ञान आदि प्रायोगिक विषयों के द्वारा उनके कौशलों का मापन किया जाता है।

उद्देश्य के आधार पर

सामान्य उपलब्धि परीक्षण – इस प्रकार की उपलब्धि परीक्षण में किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त किए गए ज्ञान एवं कौशल से है।

नैदानिक परीक्षण – इस प्रकार के परीक्षण का प्रयोग शिक्षा के बड़े क्षेत्रों में होता है। इस प्रकार के परीक्षण का प्रयोग पाठ्यक्रम में परिवर्तन लाने, शिक्षण विधि में परिवर्तन लाने आदि शैक्षिक क्षेत्रों में परिवर्तन लाने के लिए किया जाता है। नैदानिक परीक्षण का प्रयोग तब किया जाता है जब शिक्षा के किस क्षेत्र पर शिक्षा अपने उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं कर पाती है। इसी की सहायता से कक्षा का पाठ्यक्रम, शैक्षिक विधि तथा शिक्षा शैली को निर्धारित किया जाता है।

सामग्री के आधार पर

शाब्दिक परीक्षण – शाब्दिक परीक्षण वह परीक्षण है जिसमें मौखिक एवं लिखित में से किसी भी विधि का प्रयोग करके मापन या मूल्यांकन किया जाता है। इस प्रकार के परीक्षण से छात्र की भाषा में ही प्रश्नों का प्रयोग होता है तथा शैक्षिक क्षेत्र में इसी प्रकार की परीक्षण का अधिक प्रयोग किया जाता है।

अशाब्दिक परीक्षण – अशाब्दिक परीक्षण का अर्थ हुआ कि जिन परीक्षणों में शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ती। हम कह सकते हैं कि वे परीक्षण जिनमें शब्दों के स्थान पर चिह्नों, प्रतीकों, सकेतों, चित्र आदि का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के परीक्षण का प्रयोग छोटे बच्चों या अनपढ़ लोगों के लिए किया जाता है।

रचना के आधार पर

शिक्षक निर्मित – जैसा कि नाम से ही समझा जा सकता है, शिक्षक निर्मित परीक्षण, अर्थात शिक्षक के द्वारा बनाया गया परीक्षण। इस प्रकार के परीक्षण लिखित एवं मौखिक, कोई भी हो सकते हैं। इस प्रकार के परीक्षण का प्रयोग सामान्यतः छात्रों के साप्ताहिक, मासिक, अर्धवार्षिक व वार्षिक परीक्षाओं में छात्रों का मूल्यांकन एवं मापन करने के लिए किया जाता है।

मानकीकृत परीक्षण – मानकीकृत परीक्षण अर्थात वे परीक्षण जिनके मानक निर्धारित किए जाते हैं तत्पश्चात उनका पूर्ण रूप तैयार किया जाता है। मानकीकृत परीक्षण का निर्माण विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। इस परीक्षण में सर्वप्रथम मानक निर्धारित किया जाता है तत्पश्चात उन मानकों के आधार पर किसी एक विशेष कक्षा या वर्ग के छात्रों पर इस परीक्षण का प्रयोग किया जाता है। परिणाम प्राप्त कर उसमें से अनावश्यक सामग्री निकाल दी जाती है तथा आवश्यक सामग्री जोड़ दी जाती है।

प्रशासन के आधार पर

व्यक्तिगत परीक्षण – व्यक्तिगत परीक्षण का तात्पर्य यह हुआ कि किसी एक व्यक्ति का परीक्षण एक समय पर लेना। इस प्रकार के परीक्षा में एक समय पर एक छात्र का परीक्षण होता है जिसकी सहायता से मापनकर्ता छात्र के गुणों को अधिक अच्छे से जान पाता है। इस प्रकार के परीक्षण प्रायः मौखिक रूप में होते हैं

सामूहिक परीक्षण – इस प्रकार के परीक्षण समूह में किए जाते हैं। इस प्रकार के परीक्षण में एक ही समय में कई छात्र या छात्रों के समूह का परीक्षण किया जाता है। सामूहिक परीक्षण प्रायः लिखित रूप में होते हैं।

मापन के स्वरूप के आधार पर

मानक संदर्भित परीक्षण – इस प्रकार के परीक्षण में मानक को आधार माना जाता है। इस प्रकार के परीक्षण में मुख्यतः निबंधात्मक प्रश्न होते हैं। इस प्रकार के परीक्षण में छात्रों को अपनी सूझबूझ से तथा अपनी समझ से निर्धारित मानक प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया जाता है। इस प्रकार के परीक्षण में छात्रों को 10-11 प्रश्न देकर उनमें से कोई 5-6 प्रश्न के जवाब देने को कहा जाता है।

निकष संदर्भित परीक्षण – इस प्रकार के परीक्षण में परीक्षणकर्ता द्वारा छात्रों के वास्तविक ज्ञान की जानकारी प्राप्त की जाती है। इस परीक्षण के अनुसार किसी छात्र की योग्यता को कुछ प्रश्नों से निर्धारित नहीं किया जा सकता अतः पाठ्यक्रम के सभी अध्याय में से कोई ना कोई प्रश्न अवश्य पूछा जाना चाहिए। इस प्रकार के परीक्षण से छात्र की योग्यता का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है।

उपलब्धि परीक्षण में प्रयुक्त प्रश्नों के आधार पर

निबंधनात्मक परीक्षण निबंधात्मक परीक्षण में पूछे गए प्रश्न दीर्घ उत्तरीय प्रश्न होता है। निबंधात्मक परीक्षण में छात्रों को प्रश्नों के जवाब सामान्यतः 300 से पर 500 शब्दों के मध्य देने पड़ते हैं। निबंधात्मक परीक्षण को प्राचीन प्रणाली परीक्षण तथा परंपरागत परीक्षण के नाम से भी जाना जाता है।

लघु उत्तरीय परीक्षण इस प्रकार के परीक्षण में छात्रों से छोटे जवाब वाले प्रश्न पूछे जाते हैं। इस प्रकार के प्रश्नों की उत्तर सीमा 50 से 100 शब्द तक की हो सकती है या एक पंक्ति में भी इसका उत्तर दिया जा सकता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षण – इस प्रकार के परीक्षण में बहुत छोटे-छोटे प्रश्न पूछे जाते हैं। इस प्रकार के परीक्षण में छात्रों द्वारा संकेत या एक शब्द या कुछ शब्दों में जवाब दिया जाता है। इस प्रकार के परीक्षण का प्रयोग निबंधात्मक परीक्षण के दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है।

उपसंहार

उपलब्धि परीक्षण का मुख्य लक्ष्य छात्रों की भावात्मक, क्रियात्मक एवं ज्ञानात्मक पक्षों का विकास करना होता है। उपलब्धि परीक्षण की सहायता से छात्रों के ज्ञानात्मक, क्रियात्मक एवं भावात्मक पक्षों में जो परिवर्तन आते हैं उनका मापन किया जाता है। छात्रों के ज्ञानात्मक पक्षों की प्राप्ति हमें वस्तुनिष्ठ प्रश्नों से हो जाती है, क्रियात्मक पक्षों की प्राप्ति प्रायोगिक परीक्षण से हो जाती है तथा भावात्मक पक्षों की प्राप्ति निबंधात्मक परीक्षण से हो जाती है। अतः हम कह सकते हैं कि बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए उपलब्धि परीक्षण एक अहम भूमिका निभाता है। उपलब्धि परीक्षण की सहायता से ही विद्यालयों के पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियां तथा शिक्षण शैली आदि का निर्माण एवं परिवर्तन किए जाते हैं।

यह भी जानें-

शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा (meaning and definition of education)

आचार्य नरेंद्र देव समिति (1952-1953)

राधाकृष्णन आयोग (विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग)

मापन के स्तर (Levels of Measurement)

पाठ्यक्रम के प्रकार

पाठ्यवस्तु या पाठ्यविवरण

पाठ्यचर्या

Achievement test